Book Title: Agam 05 Bhagwati Sutra Part 01 Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1' शतक/ शतकशतक/उद्देशक/ सूत्रांक वाला है, क्या वह विपुल और भोग्य भोगों को भोगने में समर्थ है ? इसका कथन भी परमावधिज्ञानी की तरह करना चाहिए यावत् वह महानिर्जरा और महापर्यवसान वाला होता है। सूत्र-३६४
भगवन् ! ये जो असंज्ञी प्राणी हैं, यथा-पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक ये पाँच तथा छठे कईं त्रसकायिक जीव हैं, जो अन्ध हैं, मूढ़ हैं, तामस में प्रविष्ट की तरह हैं, (ज्ञानावरणरूप) तमःपटल और (मोहनीयरूप) मोहजाल से आच्छादित हैं, वे अकामनिकरण (अज्ञान रूप में) वेदना वेदते हैं, क्या ऐसा कहा जा सकता है? हाँ, गौतम ! जो ये असंज्ञी प्राणी हैं यावत्..ये सब अकामनिकरण वेदना वेदते हैं, ऐसा कहा जा सकता है । भगवन् ! क्या ऐसा होता है कि समर्थ होते हुए भी जीव अकामनिकरण वेदना को वेदते हैं ? हाँ, गौतम ! वेदते हैं । भगवन् ! समर्थ होते हए भी जीव अकामनिकरण वेदना को कैसे वेदते हैं ? गौतम! जो जीव समर्थ होते हए भी अन्धकार में दीपक के बिना रूपों को देखने में समर्थ नहीं होते, जो अवलोकन किये बिना सम्मुख रहे हुए रूपों को देख नहीं सकते, अवेक्षण किये बिना पीछे के भाग को नहीं देख सकते, अवलोकन किये बिना अगल-बगल के रूपों को नहीं देख सकते, आलोकन किये बिना ऊपर के रूपों को नहीं देख सकते और न आलोकन किये बिना नीचे के रूपों को देख सकते हैं, इसी प्रकार हे गौतम ! ये जीव समर्थ होते हुए भी अकामनिकरण वेदना वेदते हैं । भगवन् ! क्या ऐसा भी होता है कि समर्थ होते हुए भी जीव प्रकामनिकरण (तीव्र ईच्छापूर्वक) वेदना को वेदते हैं ? हाँ, गौतम ! वेदते हैं । भगवन् ! समर्थ होते हुए भी जीव प्रकामनिकरण वेदना को किस प्रकार वेदते हैं ? गौतम ! जो समुद्र के पार जाने में समर्थ नहीं हैं, जो समुद्र के पार रहे हुए रूपों को देखने में समर्थ नहीं है, जो देवलोक में जाने में समर्थ नहीं हैं और जो देवलोक में रहे हुए रूपों को देख नहीं सकते, हे गौतम ! वे समर्थ होते हुए भी प्रकामनिकरण वेदना को वेदते हैं । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । यह इसी प्रकार है।
शतक-७ - उद्देशक-८ सूत्र-३६५
भगवन् ! क्या छद्मस्थ मनुष्य, अनन्त और शाश्वत अतीतकाल में केवल संयम द्वारा, केवल संवर द्वारा, केवल ब्रह्मचर्य से तथा केवल अष्टप्रवचनमाताओं के पालन से सिद्ध हआ है, यावत् उसने सर्व दुःखों का अन्त किया है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। इस विषय में प्रथम शतक के चतुर्थ उद्देशक में जिस प्रकार कहा है, उसी प्रकार वह, यावत् अलमत्थुः पाठ तक कहना चाहिए। सूत्र-३६६
भगवन् ! क्या वास्तव में हाथी और कुन्थुए का जीव समान है ? हाँ, गौतम ! हाथी और कुन्थुए का जीव समान है। इस विषय में राजप्रश्नीयसूत्र में कहे अनुसार खुड्डियं वा महालियं वा इस पाठ तक कहना चाहिए। सूत्र - ३६७
भगवन् ! नैरयिकों द्वारा जो पापकर्म किया गया है, किया जाता है और किया जाएगा, क्या वह सब दुःख रूप हैं और (उनके द्वारा) जिसकी निर्जरा की गई है, क्या वह सुखरूप है? हाँ, गौतम ! नैरयिक द्वारा जो पापकर्म किया गया है, यावत् वह सब दुःखरूप है और (उनके द्वारा) जिन (पापकर्मों) की निर्जरा की गई है, वह सब सुखरूप है। इस प्रकार वैमानिकों पर्यन्त चौबीस दण्डकों को जान लेना चाहिए। सूत्र-३६८
भगवन् ! संज्ञाएं कितने प्रकार की कही गई हैं ? गौतम ! दस प्रकार की हैं । आहारसंज्ञा, भयसंज्ञा, मैथुन संज्ञा, परिग्रहसंज्ञा, क्रोधसंज्ञा, मानसंज्ञा, मायासंज्ञा, लोभसंज्ञा, लोकसंज्ञा और ओघसंज्ञा । वैमानिकों पर्यन्त चौबीस दण्डकों में ये दस संज्ञाएं पाई है।
नैरयिक जीव दस प्रकार की वेदना का अनुभव करते हुए रहते हैं । वह इस प्रकार-शीत, उष्ण, क्षुधा, पीपासा, कण्डू, पराधीनता, ज्वर, दाह, भय और शोक ।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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