Book Title: Agam 05 Bhagwati Sutra Part 01 Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1'
शतक/ शतकशतक/उद्देशक/ सूत्रांक चतुर्दशपूर्वधारी श्रुतकेवली ने उत्करिका भेद द्वारा भेदे जाते हुए अनन्त द्रव्यों को लब्ध किया है, प्राप्त किया है तथा अभिसमन्वागत किया है । इस कारण से वह उपर्युक्त प्रकार से एक घट से हजार घट आदि करके दिखलाने में समर्थ हैं। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है, यों कहकर यावत् विचरण करने लगे।
शतक-५ - उद्देशक-५ सूत्र-२४१
भगवन् ! क्या छद्मस्थ मनुष्य शाश्वत, अनन्त, अतीत काल में केवल संयम द्वारा सिद्ध हआ है ? गौतम ! जिस प्रकार प्रथम शतक के चतुर्थ उद्देशक में कहा है, वैसा ही आलापक यहाँ भी कहना; यावत् अलमस्तु कहा जा सकता है; यहाँ तक कहना। सूत्र - २४२
भगवन् ! अन्यतीर्थिक ऐसा कहते हैं यावत् प्ररूपणा करते हैं कि समस्त प्राण, समस्त भूत, समस्त जीव और समस्त सत्त्व, एवंभूत (जिस प्रकार कर्म बाँधा है, उसी प्रकार) वेदना वेदते हैं, भगवन् ! यह ऐसा कैसे है ? गौतम ! वे अन्यतीर्थिक जो इस प्रकार कहते हैं, यावत् प्ररूपणा करते हैं कि सर्व प्राण, भूत, जीव और सत्त्व एवंभूत वेदना वेदते हैं, उन्होंने यह मिथ्या कथन किया है । हे गौतम ! मैं यों कहता हूँ, यावत् प्ररूपणा करता हूँ कि कितने ही प्राण, भूत, जीव और सत्त्व, एवंभूत वेदना वेदते हैं और कितने ही प्राण, भूत, जीव और सत्त्व, अनेवंभूत वेदना वेदते हैं।
भगवन! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ? गौतम ! जो प्राण भत. जीव और सत्त्व. जिस प्रकार स्वयं ने कर्म किये हैं, उसी प्रकार वेदना वेदते हैं, वे प्राण, भूत, जीव और सत्त्व, एवंभूत वेदना वेदते हैं किन्तु जो प्राण, भूत, जीव और सत्त्व, जिस प्रकार कर्म किये हैं, उसी प्रकार वेदना नहीं वेदते वे प्राण, भूत, जीव और सत्त्व अनेवंभूत वेदना वेदते हैं । इसी कारण से ऐसा कहा जाता है कि कतिपय प्राण भूतादि एवम्भूत वेदना वेदते हैं और कतिपय प्राण भूतादि अनेवंभूत वेदना वेदते हैं।
भगवन् ! नैरयिक क्या एवंभूत वेदना वेदते हैं, अथवा अनेवंभूत वेदना वेदते हैं ? गौतम ! नैरयिक एवंभूत वेदना भी वेदते हैं और अनेवंभूत वेदना भी वेदते हैं । भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ? गौतम ! जो नैरयिक अपने किये हुए कर्मों के अनुसार वेदना वेदते हैं वे एवंभूत वेदना वेदते हैं और जो नैरयिक अपने किये हुए कर्मों के अनुसार वेदना नहीं वेदते; वे अनेवंभूत वेदना वेदते हैं । इसी प्रकार यावत् वैमानिक पर्यन्त संसारी जीवों के समूह के विषय में जानना चाहिए। सूत्र-२४३
भगवन् ! जम्बूद्वीप में, इस भारतवर्ष में, इस अवसर्पिणी काल में कितने कुलकर हए हैं? गौतम ! सात । इसी तरह तीर्थंकरों की माता, पिता, प्रथम शिष्याएं, चक्रवर्तियों की माताएं, स्त्रीरत्न, बलदेव, वासुदेव, वासुदेवों के मातापिता, प्रतिवासुदेव आदि का कथन जिस प्रकार समवायांगसूत्र अनुसार यहाँ भी कहना । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। यह इसी प्रकार है।
शतक-५ - उद्देशक-६ सूत्र - २४४
भगवन् ! जीव अल्पायु के कारणभूत कर्म किस कारण से बाँधते हैं ? गौतम ! तीन कारणों से जीव अल्पायु के कारणभूत कर्म बाँधते हैं-(१) प्राणियों की हिंसा करके, (२) असत्य भाषण करके और (३) तथारूप श्रमण या माहन को अप्रासुक, अनेषणीय अशन, पान,खादिम और स्वादिम-दे कर । जीव अल्पायुष्कफल वाला कर्म बाँधते हैं
भगवन् ! जीव दीर्घायु के कारणभूत कर्म कैसे बाँधते हैं ? गौतम ! तीन कारणों से जीव दीर्घायु के कारण भूत कर्म बाँधते हैं-(१) प्राणातिपात न करने से, (२) असत्य न बोलने से, और (३) तथारूप श्रमण और माहन को प्रासुक और एषणीय अशन, पान, खादिम और स्वादिम-देने से । इस प्रकार से जीव दीर्घायुष्क के कर्म का बन्ध करते हैं।
भगवन् ! जीव अशुभ दीर्घायु के कारणभूत कर्म किन कारणों से बाँधते हैं ? गौतम ! प्राणियों की हिंसा
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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