Book Title: Agam 05 Bhagwati Sutra Part 01 Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1'
शतक/ शतकशतक/उद्देशक/सूत्रांक करके, असत्य बोलकर, एवं तथारूप श्रमण और माहन की हीलना, निन्दा, खिंसना, गर्दा एवं अपमान करके, अमनोज्ञ और अप्रीतिकार अशन, पान, खादिम और स्वादिम दे करके । इस प्रकार जीव अशुभ दीर्घायु के कारण भूत कर्म बाँधते हैं।
भगवन् ! जीव शुभ दीर्घायु के कारणभूत कर्म किन कारणों से बाँधते हैं ? गौतम ! प्राणिहिंसा न करने से, असत्य न बोलने से, और तथारूप श्रमण या माहन को वन्दना, नमस्कार यावत् पर्युपासना करके मनोज्ञ एवं प्रीतिकारक अशन, पान, खादिम और स्वादिम देने से । इस प्रकार जीव शुभ दीर्घायु का कारणभूत कर्म बाँधते हैं। सूत्र-२४५
भगवन! भाण्ड बेचते हए किसी गहस्थ का वह किराने का माल कोई अपहरण कर ले. फिर उस किराने के सामान की खोज करते हुए उस गृहस्थ को, हे भगवन् ! क्या आरम्भिकी क्रिया लगती है, या पारिग्रहिकी क्रिया लगती है ? अथवा मायाप्रत्ययिकी, अप्रत्याख्यानिकी या मिथ्यादर्शन-प्रत्ययिकी क्रिया लगती है ? गौतम ! उनको आरम्भिकी क्रिया लगती है, तथा पारिग्रहिकी, मायाप्रत्ययिकी एवं अप्रत्याख्यानिकी क्रिया भी लगती है, किन्तु मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी क्रिया कदाचित् लगती है, और कदाचित् नहीं लगती। यदि चुराया हआ सामान वापस मिल जाता है, तो वे सब क्रियाएं अल्प हो जाती हैं।
भगवन् ! किराना बेचने वाले गृहस्थ से किसी व्यक्ति ने किराने का माल खरीद लिया, उस सौदे को पक्का करने के लिए खरीददार ने सत्यंकार (बयाना) भी दे दिया, किन्तु वह (किराने का माल) अभी तक ले जाया गया नहीं है; भगवन् ! उस भाण्डविक्रेता को उस किराने के माल से आरम्भिकी यावत् मिथ्यादर्शन-प्रत्ययिकी क्रियाओं में से कौन-सी क्रिया लगती है ? गौतम ! उस गृहपति को उस किराने के सामान से आरम्भिकी से लेकर अप्रत्या-ख्यानिकी तक चार क्रियाएं लगती हैं । मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी क्रिया कदाचित् लगती है और कदाचित् नहीं लगती। खरीददार को तो ये सब क्रियाएं प्रतन (अल्प) हो जाती हैं।
भगवन् ! किराना बेचने वाले गृहस्थ के यहाँ से यावत् खरीददार उस किराने के माल को अपने यहाँ ले आया, भगवन् ! उस खरीददार को उस किराने के माल से आरम्भिकी से लेकर मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी तक कितनी क्रियाएं लगती हैं ? और उस विक्रेता गृहस्थ को पाँचों क्रियाओं में से कितनी क्रियाएं लगती हैं ? गौतम ! खरीददार को उस किराने के सामान से आरम्भिकी से लेकर अप्रत्याख्यानिकी तक चारों क्रियाएं लगती हैं, मिथ्यादर्शन-प्रत्ययिकी क्रिया की भजना है; विक्रेता गृहस्थ को तो ये सब क्रियाएं प्रतनु (अल्प) होती हैं । भगवन् ! भाण्ड-विक्रेता गृहस्थ से खरीददार ने किराने का माल खरीद लिया, किन्तु जब तक उस विक्रेता को उस माल का मूल्यरूप धन नहीं मिला, तब तक, हे भगवन् ! उस खरीददार को उस अनुपनीत धन से कितनी क्रियाएं लगती हैं ? उस विक्रेता को कितनी क्रियाएं लगती हैं ? गौतम ! यह आलापक भी उपनीत भाण्ड के आलापक के समान समझना चाहिए । चतुर्थ आलापक-यदि धन उपनीत हो तो प्रथम आलापक (जो कि अनुपनीत भाण्ड के विषय में कहा है) के समान समझना चाहिए । (सारांश यह है कि) पहला और चौथा आलापक समान है, इसी तरह दूसरा और तीसरा आलापक समान है।
भगवन् ! तत्काल प्रज्वलित अग्निकाय क्या महाकर्मयुक्त, तथा महाक्रिया, महाश्रव और महावेदना से युक्त होता है ? और इसके पश्चात् समय-समय में क्रमशः कम होता हुआ-बुझता हुआ तथा अन्तिम समय में अंगारभूत, मुर्मुरभूत और भस्मभूत हो जाता है क्या वह अग्निकाय अल्पकर्मयुक्त तथा अल्पक्रिया, अल्पाश्रव अल्पवेदना से युक्त होता है ? हाँ, गौतम ! तत्काल प्रज्वलित अग्निकाय महाकर्मयुक्त यावत् भस्मभूत हो जाता है, उसके पश्चात् यावत् अल्पवेदनायुक्त होता है। सूत्र - २४६
भगवन् ! कोई पुरुष धनुष को स्पर्श करता है, धनुष का स्पर्श करके वह बाण का स्पर्श (ग्रहण) करता है, बाण का स्पर्श करके स्थान पर से आसनपूर्वक बैठता है, उस स्थिति में बैठकर फैंके जाने वाले बाण को कान तक आयात करे-खींचे, खींचकर ऊंचे आकाश में बाण फेंकता है । ऊंचे आकाश में फैंका हुआ वह बाण, वहाँ आकाश में
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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