Book Title: Agam 05 Bhagwati Sutra Part 01 Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1'
शतक/ शतकशतक/उद्देशक/सूत्रांक
शतक-६ सूत्र - २७२
१. वेदना, २. आहार, ३. महाश्रव, ४. सप्रदेश, ५. तमस्काय, ६. भव्य, ७. शाली, ८. पृथ्वी, ९. कर्म और १०. अन्यपूथिक-वक्तव्यता; ये दस उद्देशक हैं।
शतक-६ - उद्देशक-१ सूत्र - २७३
भगवन् ! क्या यह निश्चित है कि जो महावेदना वाला है, वह महानिर्जरा वाला है और जो महानिर्जरा वाला है, वह महावेदना वाला है ? तथा क्या महावेदना वाला और अल्पवेदना वाला, इन दोनों में वही जीव श्रेयान् (श्रेष्ठ) है, जो प्रशस्तनिर्जरा वाला है ? हाँ, गौतम ! जो महावेदना वाला है...इत्यादि जैसा ऊपर कहा है, इसी प्रकार समझना चाहिए
भगवन् ! क्या छठी और सातवीं (नरक-) पृथ्वी के नैरयिक महावेदना वाले हैं ? हाँ, गौतम ! वे महावेदना वाले हैं । भगवन् ! तो क्या वे (छठी-सातवीं नरकभूमि के नैरयिक) श्रमण-निर्ग्रन्थों की अपेक्षा भी महानिर्जरा वाले हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है।
भगवन् ! तब यह कैसे कहा जाता है कि जो महावेदना वाला है, वह महानिर्जरा वाला है, यावत् प्रशस्त निर्जरा वाला है ? गौतम ! (मान लो) जैसे दो वस्त्र हैं। उनमें से एक कर्दम के रंग से रंगा हुआ है और दूसरा वस्त्र खंजन के रंग से रंगा हुआ है । गौतम ! इन दोनों वस्त्रों में कौन-सा मुश्किल से धूल सकने योग्य, बड़ी कठिनाई से काले धब्बे उतारे जा सकें ऐसा और दुष्परिकर्मतर है और कौन-सा वस्त्र जो सरलता से धोया जा सके, आसानी से जिसके दाग उतारे जा सके तथा सुपरिकर्मतर है ? भगवन् ! उन दोनों वस्त्रों में जो कर्दम रंग से रंगा हुआ है, वही (वस्त्र) दुर्घोततर, दुर्वाम्यतर एवं दुष्परिकर्मतर है । हे गौतम ! इसी तरह नैरयिकों के पाप-कर्म गाढीकृत, चिक्कणी-कृत, निधत्त किये हुए एवं निकाचित हैं, इसलिए वे सम्प्रगाढ वेदना को वेदते हुए भी महानिर्जरा वाले नहीं है तथा महापर्यवसान वाले भी नहीं हैं । अथवा जैसे कोई व्यक्ति जोरदार आवाझ के साथ महाघोष करता हुआ लगातार जोर-जोर से चोट मारकर एरण को कूटता-पीटता हुआ भी उस एरण के स्थूल पुद्गलों को विनष्ट करने में समर्थ नहीं हो सकता; इसी प्रकार हे गौतम ! नैरयिकों के पापकर्म गाढ़ किये हुए हैं...यावत् इसलिए वे महानिर्जरा एवं महापर्यवसान वाले नहीं हैं
(गौतमस्वामी ने पूर्वोक्त प्रश्न का उत्तर पूर्ण किया-) भगवन् ! उन दोनों वस्त्रों में जो खंजन के रंग से रंगा हुआ है, वह वस्त्र सुधौततर, सुवाम्यतर और सुपरिकर्मतर है । हे गौतम ! इसी प्रकार श्रमण-निर्ग्रन्थों के यथाबादर कर्म, मन्द विपाक वाले, सत्तारहित किये हुए, विपरिणाम वाले होते हैं । (इसलिए वे) शीघ्र ही विध्वस्त हो जाते हैं । जितनी कुछ भी वेदना को वेदते हुए श्रमण-निर्ग्रन्थ महानिर्जरा और महापर्यवसान वाले होते हैं।
हे गौतम ! जैसे कोई पुरुष सूखे घास के पूले को धधकती अग्नि में डाल दे तो क्या वह सूखे घास का पूला धधकती आग में डालते ही शीघ्र जल उठता है ? हाँ, भगवन् ! वह शीघ्र ही जल उठता है । हे गौतम ! इसी तरह श्रमणनिर्ग्रन्थों के यथाबादर कर्म शीघ्र ही विध्वस्त हो जाते हैं, यावत् वे श्रमण-निर्ग्रन्थ महानिर्जरा एवं महापर्यव-सान वाले होते हैं । (अथवा) जैसे कोई पुरुष अत्यन्त तपे हुए लोहे के तवे पर पानी की बूँद डाले तो वह यावत् शीघ्र ही विनष्ट हो जाती है, इसी प्रकार हे गौतम ! श्रमण-निर्ग्रन्थों के यथाबादर कर्म भी शीघ्र ही विध्वस्त हो जाते हैं और वे यावत् महानिर्जरा एवं महापर्यवसान वाले होते हैं । इसी कारण ऐसा कहा जाता है कि जो महावेदना वाला होता है, वह महानिर्जरा वाला होता है, यावत् वही श्रेष्ठ है जो प्रशस्तनिर्जरा वाला है। सूत्र-२७४
भगवन ! करण कितने प्रकार के कहे गए हैं? गौतम! करण चार प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं-मनकरण, वचन-करण, काय-करण और कर्म-करण ।
भगवन् ! नैरयिक जीवों के कितने प्रकार के करण कहे गए हैं ? गौतम ! चार प्रकार के । मन-करण, वचनकरण, काय-करण और कर्म-करण । इसी प्रकार समस्त पंचेन्द्रिय जीवों के ये चार प्रकार के करण कहे गए हैं।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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