Book Title: Agam 05 Bhagwati Sutra Part 01 Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1' शतक/ शतकशतक /उद्देशक/ सूत्रांक गौतम ! वह श्रमणोपासक जीवित का त्याग करता है, दुस्त्यज वस्तु का त्याग करता है, दुष्कर कार्य करता है, दुर्लभ वस्तु का लाभ लेता है, बोधि प्राप्त करता है, सिद्ध होता है, यावत् सब दुःखों का अन्त करता है। सूत्र - ३३३
भगवन् ! क्या कर्मरहित जीव की गति होती है ? हाँ, गौतम ! अकर्म जीव की गति होती है। भगवन् ! अकर्म जीव की गति कैसे होती है ? गौतम ! निःसंगता से, नीरागता से, गतिपरिणाम से, बन्धन का छेद हो जाने से, निरिन्धता-(कर्मरूपी इन्धन से मुक्ति) होने से और पूर्वप्रयोग से कर्मरहित जीव की गति होती है।
भगवन् ! निःसंगता से, नीरागता से, गतिपरिणाम से यावत् पूर्वप्रयोग से कर्मरहित जीव की गति कैसे होती है? गौतम ! जैसे कोई परुष एक छिदरहित और निरुपहत सखे तम्बे पर क्रमशः परिकर्म करता-करता उस पर डाभ और कुश लपेटे । उन्हें लपेटकर उस पर आठ बार मिट्टी के लेप लगा दे, फिर उसे धूप में रख दे । बार-बार (धूप में देने से) अत्यन्त सूखे हुए उस तुम्बे को अथाह, अतरणीय, पुरुष-प्रमाण से भी अधिक जल में डाल दे, तो हे गौतम ! वह तुम्बा मिट्टी के उन आठ लेपों से अधिक भारी हो जाने से क्या पानी के उपरितल को छोडकर नीचे पृथ्वीतल पर जा बैठता है ? हाँ, भगवन् ! तुम्बा नीचे पृथ्वीतल पर जा बैठता है । गौतम ! आठों ही मिट्टी के लेपों के नष्ट हो जाने से क्या वह तुम्बा पृथ्वीतल को छोड़कर पानी के उपरितल पर आ जाता है ? हाँ, भगवन् ! आ जाता है । हे गौतम ! इसी तरह निःसंगता से, नीरागता से एवं गतिपरिणाम से कर्मरहित जीव की भी (ऊर्ध्व) गति होती है।
भगवन् ! बन्धन का छेद हो जाने से अकर्मजीव की गति कैसे होती है ? गौतम ! जैसे कोई मटर की फल, मूंग की फली, उड़द की फली, शिम्बलि-और एरण्ड के फल को धूप में रखकर सूखाए तो सूख जाने पर कटता है और उसमें उसका बीज उछलकर दूर जा गिरता है, हे गौतम ! इसी प्रकार कर्मरूप बन्धन का छेद हो जाने पर कर्मरहित जीव की गति होती है। भगवन् ! इन्धनरहित होने से कर्मरहित जीव की गति किस प्रकार होती है ? गौतम ! जैसे इन्धन से छटे हए धुएं की गति रुकावट न हो तो स्वाभाविक रूप से ऊर्ध्व होती है, इसी प्रकार हे गौतम ! कर्मरूप इन्धन से रहित होने से कर्मरहित जीव की गति होती है। भगवन ! पर्वप्रयोग से कर्मरहित जीव की गति किस प्रकार होती है ? गौतम ! जैसे-धनुष से छूटे हुए बाण की गति लक्ष्याभिमुखी होती है, इसी प्रकार हे गौतम ! पूर्वप्रयोग से कर्मरहित जीव की गति होती है। इसीलिए हे गौतम ! ऐसा कहा गया कि निःसंगता से, यावत् पूर्वप्रयोग से कर्मरहित जीव की (ऊर्ध्व) गति होती है। सूत्र - ३३४
भगवन् ! क्या दुःखी जीव दुःख से स्पृष्ट होता है अथवा अदुःखी जीव दुःख से स्पृष्ट होता है ? गौतम ! दुःखी जीव ही दुःख से स्पृष्ट होता है, किन्तु अदुःखी जीव दुःख से स्पृष्ट नहीं होता । भगवन् ! क्या दुःखी नैरयिक दुःख से स्पृष्ट होता है या अदुःखी नैरयिक दुःख से स्पृष्ट होता है ? गौतम ! दुःखी नैरयिक ही दुःख से स्पृष्ट होता है, अदुःखी नैरयिक दुःख से स्पृष्ट नहीं होता । इसी तरह वैमानिक पर्यन्त दण्डकों में कहना चाहिए।
इसी प्रकार के पांच दण्डक (आलापक) कहने चाहिए, यथा-(१) दुःखी दुःख से स्पृष्ट होता है, (२) दुःखी दुःख का परिग्रहण करता है, (३) दुःखी दुःख की उदीरणा करता है, (४) दुःखी दुःख का वेदन करता है और (५) दुःखी दुःख की निर्जरा करता है। सूत्र - ३३५
भगवन् ! उपयोगरहित गमन करते हुए, खड़े होते हुए, बैठते हुए या सोते हुए और इसी प्रकार बिना उपयोग के वस्त्र, पात्र, कम्बल और पादपोंछन ग्रहण करते हए या रखते हए अनगार को ऐर्यापथिकी क्रिया लगती है अथवा साम्परायिकी क्रिया लगती है ? गौतम ! ऐसे अनगार को साम्परायिकी क्रिया लगती है।
भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है ? गौतम ! जिस जीव के क्रोध, मान, माया और लोभ व्युच्छिन्न हो गए, उस को ऐर्यापथिकी क्रिया लगती है, साम्परायिकी क्रिया नहीं लगती। किन्तु जिस जीव के क्रोध, मान, माया और लोभ व्युच्छिन्न नहीं हुए, उसको साम्परायिकी क्रिया लगती है, ऐर्यापथिकी क्रिया नहीं लगती । सूत्र के अनुसार
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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