Book Title: Agam 05 Bhagwati Sutra Part 01 Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1'
शतक/ शतकशतक/उद्देशक/ सूत्रांक एकेन्द्रिय जीवों के दो प्रकार के करण होते हैं-काय-करण और कर्म-करण । विकलेन्द्रिय जीवों के तीन प्रकार के करण होते हैं, यथा-वचन-करण, काय-करण और कर्म-करण । भगवन् ! नैरयिक जीव करण से वेदना वेदते हैं अथवा अकरण से ? गौतम ! नैरयिक जीव करण से वेदना वेदते हैं, अकरण से वेदना नहीं वेदते । भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ? गौतम ! नैरयिक-जीवों के चार प्रकार के करण कहे गए हैं, मन-करण यावत् कर्म-करण । उनके ये चारों करण अशुभ होने से वे करण द्वारा असातावेदना वेदते हैं, अकरण द्वारा नहीं । इस कारण से ऐसा कहा गया है कि नैरयिक जीव करण से असातावेदना वेदते हैं, अकरण से नहीं।।
भगवन् ! असुरकुमार देव क्या करण से वेदना वेदते हैं, अथवा अकरण से ? गौतम ! असुरकुमार करण से वेदना वेदते हैं, अकरण से नहीं। भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ? गौतम ! असुरकुमारों के चार प्रकार के करण कहे गए हैं । यथा-मन-करण, वचन-करण, काय-करण और कर्म-करण । असुरकुमारों के ये चारों करण शुभ होने से वे करण से सातावेदना वेदते हैं, किन्तु अकरण से नहीं । इसी तरह यावत स्तनितकुमार तक कहना।
भगवन् ! पृथ्वीकायिकों के लिए भी इसी प्रकार प्रश्न है । गौतम ! (पथ्वीकायिक जीव करण द्वारा वेदना वेदते हैं, किन्तु अकरण द्वारा नहीं ।) विशेष यह है कि इनके ये करण शुभाशुभ होने से ये करण द्वारा विविध प्रकार से वेदना वेदते हैं; किन्तु अकरण द्वारा नहीं।
औदारिक शरीर वाले सभी जीव शुभाशुभ करण द्वारा विमात्रा से वेदना (कदाचित् सातावेदना कदाचित् असातावेदना) वेदते हैं । देव शुभकरण द्वारा सातावेदना वेदते हैं। सूत्र - २७५
भगवन् ! जीव (क्या) महावेदना और महानिर्जरा वाले हैं, महावेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं, अल्पवेदना और महानिर्जरा वाले हैं, अथवा अल्पवेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं ? गौतम ! कितने ही जीव महावेदना और महानिर्जरा वाले हैं, कितने ही जीव महावेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं, कईं जीव अल्पवेदना और महानिर्जरा वाले हैं, तथा कईं जीव अल्पवेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं।
भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है ? गौतम ! प्रतिमा-प्रतिपन्न अनगार-महावेदना और महानिर्जरा वाला होता है । छठी-सातवीं नरक-पृथ्वीयों के नैरयिक जीव महावेदना वाले, किन्तु अल्पनिर्जरा वाले होते हैं । शैलेशी-अवस्था को प्राप्त अनगार अल्पवेदना और महानिर्जरा वाले होते हैं और अनुत्तरौपपातिक देव अल्पवेदना और अल्पनिर्जरा वाले होते हैं । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है। सूत्र-२७६
महावेदना, कर्दम और खंजन के रंग से रंगे हुए वस्त्र, अधिकरणी, घास का पूला, लोहे का तवा या कड़ाह, करण और महावेदना वाले जीव; इतने विषयों का निरूपण इस प्रथम उद्देशक में किया गया है।
शतक-६ - उद्देशक-२ सूत्र-२७७
राजगृह नगर में...यावत् भगवान महावीर ने फरमाया-यहाँ प्रज्ञापना सूत्र में जो आहार-उद्देशक कहा है, वह सम्पूर्ण जान लेना । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
शतक-६ - उद्देशक-३ सूत्र-२७८,२७९
१. बहुकर्म, २. वस्त्रमें प्रयोग से और स्वाभाविक रूप से (विस्रसा) पुद्गल, ३. सादि, ४. कर्मस्थिति, ५. स्त्री, ६. संयत, ७. सम्यग्दृष्टि,८. संज्ञी, ९. भव्य, १०.दर्शन, ११. पर्याप्त, १२. भाषक, १३. परित्त, १४. ज्ञान, १५. योग, १६. उपयोग, १७. आहारक, १८. सूक्ष्म, १९. चरम-बन्ध २०. अल्पबहुत्व का वर्णन इस उद्देशकमें किया गया है। सूत्र - २८०
भगवन् ! क्या निश्चय ही महाकर्म वाले, महाक्रिया वाले, महाश्रव वाले और महावेदना वाले जीव के सर्वतः
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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