Book Title: Agam 05 Bhagwati Sutra Part 01 Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1'
शतक/ शतकशतक/उद्देशक/सूत्रांक इसी प्रकार पांचवी, छठी और सातवी पृथ्वीयों में केवल देव ही (यह सब) करते हैं।
भगवन् ! क्या सौधर्म और ईशान कल्पों के नीचे गृह अथवा गृहापण हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। भगवन् ! क्या सौधर्म और ईशान देवलोक के नीचे महामेघ हैं ? हाँ, गौतम ! हैं । (सौधर्म और ईशान देवलोक के नीचे पूर्वोक्त सब कार्य) देव और असुर करते हैं, नागकुमार नहीं करते । इसी प्रकार वहाँ स्तनितशब्द के लिए भी कहना।
- भगवन् ! क्या वहाँ बादर पृथ्वीकाय और बादर अग्निकाय हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं । यह निषेध विग्रहगतिसमापन्न जीवों के सिवाय दूसरे जीवों के लिए जानना चाहिए । भगवन् ! क्या वहाँ चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र
और तारारूप हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! क्या वहाँ ग्राम यावत् सन्निवेश हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! क्या वहाँ चन्द्राभा, सूर्याभा आदि हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है।
इसी प्रकार सनत्कुमार और माहेन्द्र देवलोकों में भी कहना । विशेष यह है कि वहाँ (यह सब) केवल देव ही करते हैं। इसी प्रकार ब्रह्मलोक में भी कहना । इसी तरह ब्रह्मलोक से ऊपर सर्वस्थलों में पूर्वोक्त प्रकार से कहना। इन सब स्थलों में केवल देव ही (पूर्वोक्त कार्य करते हैं। इन सब स्थलों में बादर अप्काय, बादर अग्निकाय और बादर वनस्पतिकाय के विषय में प्रश्न करना । उनका उत्तर भी पूर्ववत् कहना । अन्य सब बातें पूर्ववत् । सूत्र-३१४
तमस्काय में और पाँच देवलोकों तक में अग्निकाय और पृथ्वीकाय के सम्बन्ध में प्रश्न करना चाहिए । रत्नप्रभा आदि नरकपृथ्वीयों में अग्निकाय के सम्बन्ध में प्रश्न करना चाहिए। इसी तरह पंचम कल्प-देवलोक से ऊपर सब स्थानों में तथा कृष्णराजियों में अप्काय, तेजस्काय और वनस्पतिकाय के सम्बन्ध में प्रश्न करना चाहिए। सूत्र - ३१५
भगवन् ! आयुष्यबन्ध कितने प्रकार का है ? गौतम ! छह प्रकार का-जातिनामनिधत्तायु, गतिनामनिध-त्तायु, स्थितिनामनिधत्तायु, अवगाहनानामनिधत्तायु, प्रदेशनामनिधत्तायु और अनुभागनामनिधत्तायु । यावत् वैमानिकों तक दण्डक कहना।
__भगवन् ! क्या जीव जातिनामनिधत्त हैं ? गतिनामनिधत्त हैं ? यावत् अनुभागनामनिधत्त हैं ? गौतम ! जीव जातिनामनिधत्त भी हैं, यावत् अनुभागनामनिधत्त भी हैं । यह दण्डक यावत् वैमानिक तक कहना चाहिए। भगवन् क्या जीव जातिनामनिधत्तायुष्क हैं, यावत् अनुभागनामनिधत्तायुष्क हैं ? गौतम ! जीव जातिनामनिधत्तायुष्क भी हैं, यावत् अनुभागनामनिधत्तायुष्क भी हैं । यह दण्डक यावत् वैमानिक तक कहना चाहिए।
इस प्रकार ये बारह दण्डक कहने चाहिए । भगवन् ! क्या जीव जातिनामनिधत्त हैं ?, जातिनामनिधत्तायु हैं?, जातिनामनियुक्त हैं ?, जातिनामनियुक्तायु हैं ?, जातिगोत्रनिधत्त हैं ?, जातिगोत्रनिधत्तायु हैं ?, जातिगोत्र-नियुक्त हैं ?, जातिनामगोत्रनिधत्त हैं ?, जातिनामगोत्रनिधत्तायु हैं ?, क्या जीव जातिनामगोत्रनियुक्तायु हैं ? यावत् अनुभागनामगोत्रनियुक्तायु हैं ? गौतम ! जीव जातिनामनिधत्त भी हैं यावत् अनुभागनामगोत्रनियुक्तायु भी हैं । यह दण्डक यावत् वैमानिकों तक कहना। सूत्र - ३१६
भगवन् ! क्या लवणसमुद्र, उछलते हुए जल वाला है, सम जल वाला है, क्षुब्ध जल वाला है अथवा अक्षुब्ध जल वाला है ? गौतम ! लवणसमुद्र उच्छितोदक है, किन्तु प्रस्तृतोदक नहीं है; वह क्षुब्ध जल वाला है, किन्तु अक्षुब्ध जल वाला नहीं है । यहाँ से प्रारम्भ करके जीवाभिगम सूत्र अनुसार यावत् इस कारण से, हे गौतम ! बाहर के (द्वीप-) समुद्र पूर्ण, पूर्वप्रमाण वाले, छलाछल भरे हुए, छलकते हुए और समभर घट के रूप में, तथा संस्थान से एक ही तरह के स्वरूप वाले, किन्तु विस्तार की अपेक्षा अनेक प्रकार के स्वरूप वाले हैं; द्विगुण-द्विगुण विस्तार वाले हैं; यावत् इस तिर्यक्लोक में असंख्येय द्वीप-समुद्र हैं । सबसे अन्त में स्वयम्भूरमणसमुद्र है । इस प्रकार द्वीप और समुद्र कहे गए हैं
भगवन् ! द्वीप-समुद्रों के कितने नाम कहे गए हैं ? गौतम ! इस लोक में जितने भी शुभ नाम, शुभ रूप, शुभ रस, शुभ गन्ध और शुभ स्पर्श हैं, उतने ही नाम द्वीप-समुद्रों के कहे गए हैं । इस प्रकार सब द्वीप-समुद्र शुभ नामवाले
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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