Book Title: Agam 05 Bhagwati Sutra Part 01 Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1'
शतक/ शतकशतक/उद्देशक/सूत्रांक सूत्र - २९६
सारस्वत, आदित्य, वह्नि, वरुण, गर्दतोय, तुषित, अव्याबाध, आग्नेय और (बीच में) नवमा रिष्टदेव । सूत्र - २९७
भगवन् ! सारस्वत देव कहाँ रहते हैं ? गौतम ! सारस्वत देव अर्चि विमान में रहते हैं । भगवन् ! आदित्य देव कहाँ रहते हैं ? गौतम ! आदित्य देव अर्चिमाली विमान में रहते हैं । इस प्रकार अनुक्रम से रिष्ट विमान तक जान लेना चाहिए । भगवन् ! रिष्टदेव कहाँ रहते हैं ? गौतम ! रिष्टदेव रिष्ट विमान में रहते हैं।
भगवन ! सारस्वत और आदित्य इन दो देवों के कितने देव हैं और कितने सौ देवों का परिवार कहा गया है? गौतम! सारस्वत और आदित्य, इन दो देवों के सात देव हैं और इनके ७०० देवों का परिवार है । वह्नि और वरुण, इन दो देवों के १४ देव स्वामी हैं और १४ हजार देवों का परिवार कहा गया है । गर्दतोय और तुषित देवों के ७ देव स्वामी हैं और ७ हजार देवों का परिवार कहा गया है। शेष तीनों देवों के नौ देव स्वामी और ९०० देवों का परिवार कहा गया है सूत्र - २९८
प्रथम युगल में ७००, दूसरे युगल में १४,००० तीसरे युगल में ७,००० और शेष तीन देवों के ९०० देवों का परिवार है। सूत्र - २९९
भगवन् ! लोकान्तिक विमान किसके आधार पर प्रतिष्ठित है ? गौतम ! लोकान्तिक विमान वायुप्रतिष्ठित है। इस प्रकार-जिस तरह विमानों का प्रतिष्ठान, विमानों का बाहल्य, विमानों की ऊंचाई और विमानों के संस्थान आदि का वर्णन जीवाजीवाभिगमसूत्र के देव-उद्देशक में ब्रह्मलोक की वक्तव्यता में कहा है, तदनुसार यहाँ भी कहना चाहिए; यावत्-हाँ, गौतम ! सभी प्राण, भूत, जीव और सत्त्व यहाँ अनेक बार और अनन्त बार पहले उत्पन्न हो चूके हैं, किन्तु लोकान्तिक विमानों में देवरूप में उत्पन्न नहीं हुए।
भगवन् ! लोकान्तिक विमानों में लोकान्तिक देवों की कितने काल की स्थिति कही गई है ? गौतम ! आठ सागरोपम की स्थिति कही गई है । भगवन् ! लोकान्तिक विमानों से लोकान्त कितना दूर है ? गौतम ! लोकान्तिक विमानों से असंख्येय हजार योजन दूर लोकान्त कहा गया है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
शतक-६ - उद्देशक-६ सूत्र - ३००
भगवन् ! पृथ्वीयाँ कितनी हैं ? गौतम ! सात हैं । यथा-रत्नप्रभा यावत् तमस्तमःप्रभा । रत्नप्रभापृथ्वी से लेकर अधःसप्तमी पृथ्वी तक, जिस पृथ्वी के जितने आवास हों, उतने कहने चाहिए । भगवन् ! यावत् अनुत्तर-विमान कितने हैं? गौतम ! पाँच अनुत्तरविमान हैं। -विजय,यावत् सर्वार्थसिद्ध विमान । सूत्र-३०१
भगवन् ! जो जीव मारणान्तिक-समुद्घात से समवहत हुआ है और समवहत होकर इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से किसी एक नारकावास में नैरयिक रूप में उत्पन्न होने के योग्य है, भगवन् ! क्या वह वहाँ जाकर आहार करता है ? आहार को परिणमाता है ? और शरीर बाँधता है ? गौतम ! कोई जीव वहाँ जाकर ही आहार करता है, आहार को परिणमाता है या शरीर बाँधता है; और कोई जीव वहाँ जाकर वापस लौटता है, वापस लौटकर यहाँ आता है । यहाँ आकर वह फिर दूसरी बार मारणान्तिक समुद्घात द्वारा समवहत होता है । समवहत होकर इस रत्नप्रभापृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से किसी एक नारकावास में नैरयिक रूप से उत्पन्न होता है । इसके पश्चात् आहार ग्रहण करता है, परिणमाता है और शरीर बाँधता है। इसी प्रकार यावत् अधः सप्तमी पृथ्वी तक कहना
भगवन् ! जो जीव मारणान्तिक-समुद्घात से समवहत हुआ है और समवहत होकर असुरकुमारों के चौंसठ लाख आवासों में से किसी एक आवास में उत्पन्न होने के योग्य है; क्या वह जीव वहाँ जाकर आहार करता है ? उस
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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