Book Title: Agam 05 Bhagwati Sutra Part 01 Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1'
शतक/ शतकशतक/उद्देशक/ सूत्रांक भगवन् ! परम्परोपपन्नक वैमानिक देव जानते-देखते हैं, ऐसा कहने का क्या कारण है ? गौतम ! परम्परोपपन्नक वैमानिक देव दो प्रकार के हैं, यथा-पर्याप्त और अपर्याप्त । इनमें से जो पर्याप्त हैं, वे इसे जानते-देखते हैं; किन्तु जो अपर्याप्त वैमानिक देव हैं, वे नहीं जानते-देखते । इसी तरह अनन्तरोपपन्नक-परम्परोपपन्नक, पर्याप्तअपर्याप्त, एवं उपयोगयुक्त उपयोगरहित इस प्रकार के वैमानिक देवों में से उपयोगयुक्त वैमानिक देव हैं, वे ही जानतेदेखते हैं । इसी कारण से ऐसा कहा गया है कि कितने ही वैमानिक देव जानते-देखते हैं, और कितने ही नहीं जानतेदेखते। सूत्र - २३६
भगवन् ! क्या अनुत्तरोपपातिक देव अपने स्थान पर रहे हुए ही, यहाँ रहे हुए केवली के साथ आलाप और
में समर्थ हैं ? गौतम! हाँ, हैं। भगवन ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है ? हे गौतम ! अनत्तरौपपातिक देव अपने स्थान पर रहे हुए ही, जो अर्थ, हेतु, प्रश्न, कारण अथवा व्याकरण (व्याख्या) पूछते हैं, उसका उत्तर यहाँ रहे हुए केवली भगवान देते हैं । इस कारण से यह कहा गया है कि अनुत्तरौपपातिक देव यावत् आलाप-संलाप करने में समर्थ हैं । भगवन् ! केवली भगवान यहाँ रहे हुए जिस अर्थ, यावत् व्याकरण का उत्तर देते हैं, क्या उस उत्तर को वहाँ रहे हुए अनुत्तरौपपातिक देव जानते-देखते हैं ? हाँ, गौतम ! वे जानते-देखते हैं । भगवन् ऐसा किस कारण से (कहा जाता है) कि जानते-देखते हैं ? गौतम ! उन देवों को अनन्त मनोद्रव्यवर्गणा लब्ध है, प्राप्त है, सम्मुख की हुई है । इस कारण से यहाँ विराजित केवली भगवान द्वारा कथित अर्थ, हेतु आदि को वे वहाँ रहे हए ही जान-देख लेते हैं। सूत्र-२३७
भगवन् ! क्या अनुत्तरौपपातिक देव उदीर्णमोह हैं, उपशान्त-मोह हैं, अथवा क्षीणमोह हैं? गौतम ! वे उदीर्णमोह नहीं हैं, उपशान्तमोह हैं, क्षीणमोह नहीं हैं। सूत्र-२३८
भगवन् ! क्या केवली भगवान आदानों (इन्द्रियों) से जानते और देखते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। भगवन् ! किस कारण से केवली भगवान इन्द्रियों से नहीं जानते-देखते ? गौतम ! केवली भगवान पूर्वदिशा में सीमित भी जानते-देखते हैं, अमित (असीम) भी जानते-देखते हैं, यावत् केवली भगवान का (ज्ञान और) दर्शन निरावरण है। इस कारण से कहा गया है कि वे इन्द्रियों से नहीं जानते-देखते। सूत्र-२३९
भगवन् ! केवली भगवान इस समय में जिन आकाश-प्रदेशों पर अपने हाथ, पैर, बाहू और उरू को अवगाहित करके रहते हैं, क्या भविष्यकाल में भी वे उन्हीं आकाशप्रदेशों पर अपने हाथ आदि को अवगाहित करके रह सकते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ? गौतम ! केवली भगवान का जीवद्रव्य वीर्यप्रधान योग वाला होता है, इससे उनके हाथ आदि उपकरण चलायमान होते हैं। हाथ आदि भंगों के चलित होते रहने से वर्तमान समय में जिन आकाशप्रदेशों में केवली भगवान अपने हाथ आदि को अवगाहित करके रहे हए हैं, उन्हीं आकाशप्रदेशों पर भविष्यकाल में वे हाथ आदि को अवगाहित करके नहीं रह सकते । इसी कारण से यह कहा गया है कि केवली भगवान इसी समय में जिन आकाशप्रदेशों पर अपने हाथ, पैर यावत् उरू को अवगाहित करके रहते हैं, उस समय के पश्चात् आगामी समय में वे उन्हीं आकाशप्रदेशों पर अपने हाथ आदि को अवगाहित करके नहीं रह सकते। सूत्र-२४०
____ भगवन् ! क्या चतुर्दशपूर्वधारी (श्रुतकेवली) एक घड़े में से हजार घड़े, एक वस्त्र में से हजार वस्त्र, एक कट में से हजार कट, एक रथ में से हजार रथ, एक छत्र में से हजार छत्र और एक दण्ड में से हजार दण्ड करके दिखलाने में समर्थ है? हाँ गौतम ! वे ऐसा करके दिखलाने में समर्थ हैं।
भगवन् ! चतुर्दशपूर्वधारी एक घट में से हजार घट यावत करके दिखलाने में कैसे समर्थ हैं ? गौतम !
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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