Book Title: Agam 05 Bhagwati Sutra Part 01 Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र- ५, 'भगवती / व्याख्याप्रज्ञप्ति-1 ' सूत्र - २००
शतक/ शतकशतक / उद्देशक / सूत्रांक
भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्र के (चतुर्थ) लोकपाल- वैश्रमण महाराज का वल्गु नामक महाविमान कहाँ है? गौतम! सौधर्मावतंसक नामक महाविमान के उत्तरमें है । इस सम्बन्ध में सारा वर्णन सोम महाराज के महा-विमान की तरह जानना चाहिए; और वह यावत् राजधानी यावत् प्रासादावतंसक तक का वर्णन भी उसी तरह जान लेना चाहिए देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल वैश्रमण महाराज की आज्ञा, सेवा (निकट) वचन और निर्देश में ये देव रहते । यथा- वैश्रमणकायिक, वैश्रमणदेवकायिक, सुवर्णकुमार सुवर्णकुमारियाँ, द्वीपकुमार-द्वीपकुमारियाँ, दिक् कुमारदिक्कुमारियाँ, वाणव्यन्तर देव वाणव्यन्तर देवियाँ, ये और इसी प्रकार के अन्य सभी देव, जो उसकी भक्ति, पक्ष और भृत्यता (या भारवहन करते हैं, उसकी आज्ञा आदि में रहते हैं ।
जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दरपर्वत से दक्षिण में जो ये कार्य उत्पन्न होते हैं, जैसे कि लोहे की खानें, रांगे की खानें, ताम्बे की खानें, तथा शीशे की खानें, हिरण्य की, सुवर्ण की, रत्न की और वज्र की खानें, वसुधारा, हिरण्य की, सुवर्ण की, रत्न की, आभरण की, पत्र की, पुष्प की, फल की, बीज की, माला की, वर्ण की, चूर्ण की, गन्ध की और वस्त्र की वर्षा, भाजन और क्षीर की वृष्टि, सुकाल, दुष्काल, अल्पमूल्य, महामूल्य, सुभिक्ष, दुर्भिक्ष, क्रय-विक्रय सन्निधि, सन्निचय, निधियाँ, निधान, चिर- पुरातन, जिनके स्वामी समाप्त हो गए, जिनकी सारसंभाल करने वाले नहीं रहे, जिनकी कोई खोजखबर नहीं है, जिनके स्वामियों के गोत्र और आगार नष्ट हो गए, जिनके स्वामी उच्छिन्न हो गए, जिनकी सारसंभाल करने वाले छिन्न-भिन्न हो गए, जिनके स्वामियों के गोत्र और घर तक छिन्नभिन्न हो गए, ऐसे खजाने शृंगाटक मार्गों में, त्रिक, चतुष्क, चत्वर, चतुर्मुख एवं महापथों, सामान्य मार्गों, नगर के गन्दे नालों में श्मशान, पर्वतगृह गुफा, शान्तिगृह, शैलोपस्थान, भवनगृह इत्यादि स्थानों में गाड़ कर रखा हुआ धन; ये सब पदार्थ देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल वैश्रमण महाराज से अज्ञात, अदृष्ट, अश्रुत, अविस्मृत और अविज्ञात नहीं हैं ।
देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल वैश्रमण महाराज के ये देव अपत्यरूप से अभीष्ट हैं; पूर्णभद्र, मणिभद्र, शालिभद्र, सुमनोभद्र, चक्र-रक्ष, पूर्णरक्ष, सद्वान, सर्वयश, सर्वकामसमृद्ध, अमोघ और असंग ।
देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल- वैश्रमण की स्थिति दो पल्योपम की है; और उनके अपत्यरूप से अभिमत देवों की स्थिति एक पल्योपम की है। इस प्रकार वैश्रमण महाराज बड़ी ऋद्धि वाला यावत् महाप्रभाव वाला है । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।'
शतक- ३ - उद्देशक-८
सूत्र - २०१
राजगृह नगर में, यावत्... पर्युपासना करते हुए गौतम स्वामी ने इस प्रकार पूछा- भगवन् ! असुरकुमार देवों पर कितने देव आधिपत्य करते रहते हैं ?' गौतम ! असुरकुमार देवों पर दस देव आधिपत्य करते हुए यावत्...रहते हैं । असुरेन्द्र असुरराज चमर, सोम, यम, वरुण, वैश्रमण तथा वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि, सोम, यम, वरुण और वैश्रमण
भगवन् ! नागकुमार देवों पर कितने देव आधिपत्य करते हुए, यावत्... विचरते हैं ? हे गौतम ! नागकुमार देवों पर दस देव आधिपत्य करते हुए, यावत्... विचरते हैं । वे इस प्रकार हैं- नागकुमारेन्द्र नागकुमारराज धरण, कालपाल, कोलपाल, शंखपाल और शैलपाल । तथा नागकुमारेन्द्र नागकुमारराज भूतानन्द, कालपाल, कोलपाल, शंखपाल और शैलपाल ।
जिस प्रकार नागकुमारों के इन्द्रों के विषय में यह वक्तव्यता कही गई है, उसी प्रकार इन (देवों) के विषय में भी समझ लेना चाहिए । सुवर्णकुमार देवों पर वेणुदेव, वेणुदालि, चित्र, विचित्र, चित्रपक्ष और विचित्रपक्ष (का); विद्युतकुमार देवों पर-हरिकान्त, हरिसिंह, प्रभ, सुप्रभ, प्रभाकान्त और सुप्रभाकान्त (का); अग्निकुमार देवों परअग्निसिंह, अग्निमाणव, तेजस् तेजः सिंह तेजस्कान्त और तेजःप्रभः द्वीपकुमार - देवों पर पूर्ण, विशिष्ट, रूप रूपांश, रूपकान्त और रूपप्रभ; उदधिकुमार देवों पर जलकान्त, जलप्रभ जल, जलरूप, जलकान्त और जलप्रभ; दिक्कुमार देवों पर-अमितगति, अमितवाहन, तूर्य - गति, क्षिप्रगति, सिंहगति और सिंहविक्रमगति; वायु-कुमारदेवों पर
दीपरत्नसागर कृत् " ( भगवती )" आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद”
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