Book Title: Agam 05 Bhagwati Sutra Part 01 Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1'
शतक/ शतकशतक /उद्देशक/ सूत्रांक वेलम्ब, प्रभञ्जन, काल, महाकाल, अंजन और रिष्ट; तथा स्तनितकुमारदेवों पर-घोष, महाघोष, आवर्त, व्यावर्त, नन्दिकावर्त और महानन्दिकावर्त (का आधिपत्य रहता है) । इन सबका कथन असुरकुमारों की तरह कहना चाहिए।
दक्षिण भवनपतिदेवों के अधिपति इन्द्रों के प्रथम लोकपालों के नाम इस प्रकार हैं-सोम, कालपाल, चित्र, प्रभ, तेजस रूप, जल, त्वरितगति, काल और आयुक्त।
भगवन् ! पिशाचकुमारों पर कितने देव आधिपत्य करते हुए विचरण करते हैं ? गौतम ! उन पर दो-दो देव (इन्द्र) आधिपत्य करते हुए यावत् विचरते हैं । वे इस प्रकार हैंसूत्र - २०२, २०३
(१) काल और महाकाल, (२) सुरूप और प्रतिरूप, (३) पूर्णभद्र और मणिभद्र, (४) भीम और महाभीम । तथा- (५) किन्नर और किम्पुरुष, (६) सत्पुरुष और महापुरुष, (७) अतिकाय और महाकाय, तथा (८) गीतरति और गीतयश । ये सब वाणव्यन्तर देवों के अधिपति-इन्द्र हैं। सूत्र - २०४
ज्योतिष्क देवों पर आधिपत्य करते हुए दो देव यावत् विचरण करते हैं । यथा-चन्द्र और सूर्य ।
भगवन् ! सौधर्म और ईशानकल्प में आधिपत्य करते हुए कितने देव विचरण करते हैं ? गौतम ! उन पर आधिपत्य करते हुए यावत् दस देव विचरण करते हैं । यथा-देवेन्द्र देवराज शक्र, सोम, यम, वरुण और वैश्रमण, देवेन्द्र देवराज ईशान, सोम, यम, वरुण और वैश्रमण । यह सारी वक्तव्यता सभी कल्पों (देवलोकों) के विषय में कहनी चाहिए और जिस देवलोक का जो इन्द्र है, वह कहना चाहिए। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
शतक-३- उद्देशक-९ सूत्र-२०५
राजगृह नगर में यावत् श्रीगौतमस्वामी ने इस प्रकार पूछा-भगवन् ! इन्द्रियों के विषय कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! इन्द्रियों के विषय पाँच प्रकार के कहे गए हैं । वे इस प्रकार हैं-श्रोत्रेन्द्रिय-विषय इत्यादि । इस सम्बन्ध में जीवाभिगमसूत्र में कहा हुआ ज्योतिष्क उद्देशक सम्पूर्ण कहना चाहिए।
शतक-३ - उद्देशक-१० सूत्र-२०६
राजगृह नगर में यावत् श्री गौतम ने इस प्रकार पूछा-भगवन् ! असुरेन्द्र असुरराज चमर की कितनी परिषदाएं कही गई हैं ? हे गौतम ! उसकी तीन परिषदाएं कही गई हैं । यथा-शमिता, चण्डा और जाता । इसी प्रकार क्रमपूर्वक यावत् अच्युतकल्प तक कहना चाहिए। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
शतक-३ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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