Book Title: Agam 05 Bhagwati Sutra Part 01 Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1'
शतक/ शतकशतक/उद्देशक/सूत्रांक
शतक-३ - उद्देशक-७ सूत्र-१९४
राजगृह नगर में यावत् पर्युपासना करते हुए गौतम स्वामी ने (पूछा-) भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्र के कितने लोकपाल कहे गए हैं? गौतम! चार । सोम, यम, वरुण और वैश्रमण । भगवन ! इन चारों लोकपालों के कितने विमान हैं ? गौतम ! चार । सन्ध्याप्रभ, वरशिष्ट, स्वयंज्वल और वल्गु ।
भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल सोम नामक महाराज का सन्ध्याप्रभ नामक महाविमान कहाँ है? गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मन्दर (मेरु) पर्वत से दक्षिण दिशा में इस रत्नप्रभा पृथ्वी के बहुसम भूमि भाग से ऊपर चन्द्र, सूर्य, ग्रहगण, नक्षत्र और तारारूप आते हैं । उनसे बहुत योजन ऊपर यावत् पाँच अवतंसक कहे गए हैंअशोकावतंसक, सप्तपर्णावतंसक, चम्पकावतंसक, चूतावतंसक और मध्य में सौधर्मावतंसक है । उस सौधर्मावतंसक महाविमान से पूर्वमें, सौधर्मकल्प से असंख्य योजन दूर जाने के बाद, वहाँ पर देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल-सोम नामक महाराज का सन्ध्याप्रभ नामक महाविमान आता है, जिसकी लम्बाई-चौड़ाई साढ़े बारह लाख योजन है। उसका परिक्षेप उनचालीस लाख बावन हजार आठ सौ अड़तालीस योजन से कुछ अधिक है। इस विषय में सूर्याभदेव के विमान की वक्तव्यता, अभिषेक तक कहना । विशेष यह कि सूर्याभदेव के स्थान में सोमदेव कहना
सन्ध्याप्रभ महाविमान के सपक्ष-सप्रतिदेश, अर्थात्-ठीक नीचे, असंख्य लाख योजन आगे (दूर) जाने पर देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल सोम महाराज की सोमा नाम की राजधानी है, जो एक लाख योजन लम्बी-चौड़ी है,
और जम्बूद्वीप जितनी है । इस राजधानी में जो किले आदि हैं, उनका परिमाण वैमानिक देवों के किले आदि के परिमाण से आधा कहना चाहिए । इस तरह यावत् घर के ऊपर के पीठबन्ध तक कहना चाहिए । घर के पीठबन्ध का आयाम (लम्बाई) और विष्कम्भ (चौड़ाई) सोलह हजार योजन है। उसका परिक्षेप (परिधि) पचास हजार पाँच सौ सतानवे योजन से कुछ अधिक कहा गया है। प्रासादों की चार परिपाटियाँ कहनी चाहिए, शेष नहीं।
देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल-सोम महाराज की आज्ञा में, सेवा में, वचन-पालन में और निर्देश में ये देव रहते हैं, यथा-सोमकायिक, अथवा सोमदेवकायिक, विद्युत्कुमार-विद्युत्कुमारियाँ, अग्निकुमार-अग्निकुमारियाँ, वायुकुमार-वायुकुमारियाँ, चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारारूप; ये तथा इसी प्रकार के दूसरे सब उसकी भक्ति वाले, उसके पक्ष वाले, उससे भरण-पोषण पाने वाले देव उसकी आज्ञा, सेवा, वचनपालन और निर्देश में रहते हैं।
इस जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मेरुपर्वत के दक्षिण में जो ये कार्य होते हैं, यथा-ग्रहदण्ड, ग्रहमूसल, ग्रह-गर्जित, ग्रहयुद्ध, ग्रह-शृंगाटक, ग्रहापसव्य, अभ्र, अभ्रवृक्ष, सन्ध्या, गन्धर्वनगर, उल्कापात, दिग्दाह, गर्जित, विद्युत, धूल की वृष्टि, यूप, यक्षादीप्त, धूमिका, महिका, रजउद्घात, चन्द्रग्रहण, सूर्यग्रहण, चन्द्रपरिवेष, सूर्यपरिवेष, प्रति-चन्द्र, इन्द्रधनुष अथवा उदकमत्स्य, कपिहसित, अमोघ, पूर्वदिशा का वात और पश्चिमदिशा का वात, यावत् संवर्तक वात, ग्रामदाह यावत् सन्निवेशदाह, प्राणक्षय, जनक्षय, धनक्षय, कुलक्षय यावत् व्यसनभूत अनार्य तथा उस प्रकार के दूसरे सभी कार्य देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल-सोम महाराज से अज्ञात, अदृष्ट, अश्रुत, अस्मृत तथा अविज्ञात नहीं होते
देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल-सोम महाराज के ये देव अपत्यरूप से अभिज्ञात (जाने-माने) होते हैं, जैसेअंगारक (मंगल), विकालिक, लोहिताक्ष, शनैश्चर, चन्द्र, सूर्य, शुक्र, बुध, बृहस्पति और राहु।।
देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल-सोम महाराज की स्थिति तीन भाग सहित एक पल्योपम की होती है, और उसके द्वारा अपत्यरूप से अभिमत देवों की स्थिति एक पल्योपम की होती है । इस प्रकार सोम महाराज, महाऋद्धि
और यावत् महाप्रभाव वाला है। सूत्र - १९५
भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल-यम महाराज का वरशिष्ट नामक महाविमान कहाँ है ? गौतम ! सौधर्मावतंसक नाम के महाविमान से दक्षिण में, सौधर्मकल्प से असंख्य हजार योजन आगे चलने पर, देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल यम महाराज का वरशिष्ट नामक महाविमान बताया गया है, जो साढ़े बारह लाख योजन लम्बा
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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