Book Title: Agam 05 Bhagwati Sutra Part 01 Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1'
शतक/ शतकशतक/उद्देशक/ सूत्रांक पहिये की धूरी आरों से सुसम्बद्ध होती है, इसी प्रकार असुरेन्द्र असुरराज चमर का प्रत्येक सामानिक देव इस सम्पूर्ण जम्बूद्वीप नामक द्वीप को बहुत-से असुरकुमार देवों और देवियों द्वारा आकीर्ण, व्यतिकीर्ण, उपस्तीर्ण, संस्तीर्ण, स्पृष्ट
और गाढ़ावगाढ़ कर सकता है । इसके उपरांत हे गौतम ! असुरेन्द्र असुरराज चमर का एक-एक सामानिक देव, इस तिर्यग्लोक के असंख्य द्वीपों और समुद्रों तक के स्थल को बहुत-से असुरकुमार देवों और देवियों से आकीर्ण, व्यतिकीर्ण, उपस्तीर्ण, संस्तीर्ण, स्पृष्ट और गाढ़ावगाढ़ कर सकता है । हे गौतम ! असुरेन्द्र असुरराज चमर के प्रत्येक सामानिक देव में विकुर्वण करने की शक्ति है, वह विषयरूप है, विषयमात्र-शक्तिमात्र है, परन्तु प्रयोग करके उसने न तो कभी विकर्वण किया है. न ही करता है और न ही करेगा। सूत्र - १५३
भगवन् ! असुरेन्द्र असुरराज चमर के सामानिक देव यदि इस प्रकार की महती ऋद्धि से सम्पन्न हैं, यावत् इतना विकुर्वण करने में समर्थ हैं, तो हे भगवन् ! उस असुरेन्द्र असुरराज चमर के त्रायस्त्रिंशक देव कितनी बड़ी ऋद्धि वाले हैं ? (हे गौतम !) जैसा सामानिक देवों के विषय में कहा था, वैसा ही त्रायस्त्रिंशक देवों के विषय में कहना चाहिए। लोकपालों के विषय में भी इसी तरह कहना चाहिए । किन्तु इतना विशेष कहना चाहिए की लोकपाल संख्येय द्वीप समुद्रों को व्याप्त कर सकते हैं।
भगवन् ! जब असुरेन्द्र असुरराज चमर के लोकपाल ऐसी महाऋद्धि वाले हैं, तब असुरेन्द्र असुरराज चमर की अग्रमहिषियाँ कितनी बड़ी ऋद्धि वाली हैं, यावत् वे कितना विकुर्वण करने में समर्थ हैं ? गौतम ! असुरेन्द्र असुरराज चमर की अग्रमहिषी-देवियाँ महाऋद्धिसम्पन्न हैं, यावत् महाप्रभावशालिनी हैं । वे अपने-अपने भवनों पर, अपने-अपने एक हजार सामानिक देवों पर, अपनी-अपनी महत्तरिका देवियों पर और अपनी-अपनी परीषदाओं पर आधिपत्य करती हुई विचरती हैं; यावत् वे अग्रमहिषियाँ ऐसी महाऋद्धि वाली हैं । शेष सब वर्णन लोकपालों के समान । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। सूत्र - १५४
द्वीतिय गौतम (गोत्रीय) अग्निभूति अनगार श्रमण भगवान महावीर स्वामी को वन्दन-नमस्कार करते हैं, वन्दन-नमस्कार करके जहाँ तृतीय गौतम (-गोत्रीय) वायुभूति अनगार थे, वहाँ आए । उनके निकट पहुँचकर वे, तृतीय गौतम वायुभूति अनगार से यों बोले-हे गौतम ! असुरेन्द्र असुरराज चमर ऐसी महाऋद्धि वाला है, इत्यादि समग्र वर्णन अपृष्ट व्याकरण (प्रश्न पूछे बिना ही उत्तर) के रूप में यहाँ कहना चाहिए । तदनन्तर अग्निभूति अनगार द्वारा कथित, भाषित, प्रज्ञापित और प्ररूपित उपर्युक्त बात पर तृतीय गौतम वायुभूति अनगार को श्रद्धा नहीं हुई, प्रतीति न हुई, न ही उन्हें रुचिकर लगी । अतः उक्त बात पर श्रद्धा, प्रतीति और रुचि न करते हुए वे तृतीय गौतम वायुभूति अनगार उत्थान-द्वारा उठे और जहाँ श्रमण भगवान महावीर स्वामी विराजमान थे, वहाँ आए और यावत् उनकी पर्युपासना करते हुए इस प्रकार बोले-भगवन् ! द्वीतिय गौतम अग्निभूति अनगार ने मुझसे इस प्रकार कहा, इस प्रकार भाषण किया, इस प्रकार बतलाया और प्ररूपित किया कि-असुरेन्द्र असुरराज चमर ऐसी बड़ी ऋद्धि वाला है, यावत् ऐसा महान् प्रभावशाली है कि वह चौंतीस लाख भवनावासों आदि पर आधिपत्य-स्वामित्व करता हआ विचरता है। तो हे भगवन् ! यह बात कैसे है?
___ हे गौतम !' इस प्रकार सम्बोधन करके श्रमण भगवान महावीर ने तृतीय गौतम वायुभूति अनगार से इस प्रकार कहा-हे गौतम ! द्वीतिय गौतम अग्निभूति अनगार ने तुमसे जो इस प्रकार कहा, भाषित किया, बतलाया और प्ररूपित किया कि हे गौतम ! असुरेन्द्र असुरराज चमर ऐसी महाऋद्धि वाला है, इत्यादि हे गौतम ! यह कथन सत्य है। हे गौतम ! मैं भी इसी तरह कहता हूँ, भाषण करता हूँ, बतलाता हूँ और प्ररूपित करता हूँ कि असुरेन्द्र असुरराज चमर महाऋद्धिशाली है, इत्यादि (इसलिए हे गौतम !) यह बात सत्य है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
तृतीय गौतम वायुभूति अनगार ने श्रमण भगवान महावीर को वन्दन-नमस्कार किया, और फिर जहाँ द्वीतिय गौतम अग्निभूति अनगार थे, वहाँ उनके निकट आए । वहाँ आकर द्वीतिय गौतम अग्निभूति अनगार को वन्दन
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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