Book Title: Agam 05 Bhagwati Sutra Part 01 Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1'
शतक/ शतकशतक/उद्देशक/ सूत्रांक नमस्कार किया और पूर्वोक्त बात के लिए उनसे सम्यक विनयपूर्वक बार-बार क्षमायाचना की । तदनन्तर द्वीतिय गौतम अग्निभूति अनगार उस पूर्वोक्त बात के लिए तृतीय गौतम वायुभूति के साथ सम्यक् प्रकार से विनय-पूर्वक क्षमायाचना कर लेने पर अपने उत्थान से उठे और तृतीय गौतम वायुभूति अनगार के साथ वहाँ आए, जहाँ श्रमण भगवान महावीर विराजमान थे । वहाँ उनके निकट आकर उन्हें (श्रमण भगवान महावीर को) वन्दन-नमस्कार किया, यावत् उनकी पर्युपासना करने लगे। सूत्र-१५५
इसके पश्चात तीसरे गौतम (-गोत्रीय) वायुभूति अनगार ने श्रमण भगवान महावीर को वन्दना-नमस्कार किया. और फिर यों बोले-भगवन् ! यदि असुरेन्द्र असुरराज चमर इतनी बड़ी ऋद्धि वाला है, यावत इतनी विकर्व-णाशक्ति से सम्पन्न है, तब हे भगवन् ! वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि कितनी बड़ी ऋद्धि वाला है ? यावत् वह कितनी विकुर्वणा करने में समर्थ है ? गौतम ! वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि महाऋद्धिसम्पन्न है, यावत् महानुभाग है । वह वहाँ तीस लाख भवनावासों का तथा साठ हजार सामानिक देवों का अधिपति है । चमरेन्द्र के समान बलि के विषय में भी शेष वर्णन जान लेना । अन्तर इतना ही है कि बलि वैरोचनेन्द्र दो लाख चालीस हजार आत्मरक्षक देवों का तथा अन्य बहुत-से (उत्तरदिशावासी असुरकुमार देव-देवियों का) आधिपत्य यावत् उपभोग करता हुआ विचरता है। चमरेन्द्र की विकुर्वणाशक्ति की तरह बलीन्द्र के विषय में भी युवक युवती का हाथ दृढ़ता से पकड़कर चलता है, तब वे जैसे संलग्न होते हैं, अथवा जैसे गाड़ी के पहिये की धूरी में आरे संलग्न होते हैं, ये दोनों दृष्टान्त जानने चाहिए । विशेषता यह है कि बलि अपनी विकुर्वणा-शक्ति से सातिरेक सम्पूर्ण जम्बूद्वीप को भर देता है। शेष पूर्ववत् समझ लेना।
भगवन् ! यदि वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि इतनी महाऋद्धि वाला है, यावत् उसकी इतनी विकुर्वणाशक्ति है तो उस वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि के सामानिक देव कितनी बड़ी ऋद्धि वाले हैं, यावत् उनकी विकुर्वणाशक्ति कितनी है ? (गौतम !) बलि के सामानिक देव, त्रायस्त्रिंशक एवं लोकपाल तथा अग्रमहिषियों की ऋद्धि एवं विकुर्वणाशक्ति का वर्णन चमरेन्द्र के सामानिक देवों की तरह समझना चाहिए । विशेषता यह है कि इतनी विकुर्वणाशक्ति सातिरेक जम्बूद्वीप के स्थान तक को भर देने की है; यावत् प्रत्येक अग्रमहिषी की इतनी विकुर्वणाशक्ति विषयमात्र कही है; यावत् वे विकुर्वणा करेंगी भी नहीं; यहाँ तक पूर्ववत् समझना । हे भगवन् ! जैसा आप कहते हैं, वह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह उसी प्रकार है, यों कहकर तृतीय गौतम वायुभूति अनगार ने श्रमण महावीर स्वामी को वन्दन-नमस्कार किया और फिर न अति दूर, न अति निकट रहकर वे यावत् पर्युपासना करने लगे
तत्पश्चात् द्वीतिय गौतम अग्निभूति अनगार ने श्रमण भगवान महावीर को वन्दन-नमस्कार किया । वन्दननमस्कार करके इस प्रकार कहा-भगवन् ! यदि वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि इस प्रकार की महाऋद्धि वाला है यावत् इतनी विकुर्वणा करने में समर्थ है, तो भगवन् ! नागकुमारेन्द्र नागकुमारराज धरण कितनी बड़ी ऋद्धि वाला है ? यावत् कितनी विकुर्वणा करने में समर्थ है ? गौतम ! वह नागकुमारेन्द्र नागकुमारराज धरणेन्द्र महाऋद्धि वाला है, यावत् वह चवालीस लाख भवनावासों पर, छह हजार सामानिक देवों पर, तैंतीस त्रायस्त्रिंशक देवों पर, चार लोकपालों पर, परिवार सहित छह अग्रमहिषियों पर, तीन सभाओं पर, सात सेनाओं पर, सात सेनाधिपतियों पर और चौबीस हजार आत्मरक्षक देवों पर तथा अन्य अनेक दाक्षिणात्य कुमार देवों और देवियों पर आधिपत्य, नेतृत्व, स्वामित्व यावत् करता हुआ रहता है । उसकी विकुर्वणाशक्ति इतनी है कि जैसे युवापुरुष युवती स्त्री के करग्रहण के अथवा गाड़ी के पहिये की धूरी में संलग्न आरों के दृष्टान्त से यावत् वह अपने द्वारा वैक्रियकृत बहुत-से नागकुमार देवों और नागकुमारदेवियों से सम्पूर्ण जम्बूद्वीप को भरने में समर्थ है और तिर्यग्लोक के संख्येय द्वीप-समुद्रों जितने स्थल को भरने की शक्ति वाला है । परन्तु यावत् ऐसा उसने कभी किया नहीं, करता नहीं और भविष्य में करेगा भी नहीं। धरणेन्द्र के सामानिक देव, त्रायस्त्रिंशक देव, लोकपाल और अग्रमहिषियों की ऋद्धि आदि तथा वैक्रिय शक्ति का वर्णन चमरेन्द्र के वर्णन की तरह कह लेना चाहिए । विशेषता इतनी ही है कि इन सबकी विकुर्वणाशक्ति संख्यात द्वीप-समुद्रो तक के स्थल को भरने की समझनी चाहिए।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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