Book Title: Agam 05 Bhagwati Sutra Part 01 Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1'
शतक/ शतकशतक/उद्देशक/ सूत्रांक से उसकी हड्डियाँ तथा हड्डियों की मज्जा पतली होती है और उसका मांस और रक्त गाढ़ा हो जाता है । उस पानभोजन के जो यथाबादर पुद्गल होते हैं, उनका परिणमन उस-उस रूप में होता है । यथा-उच्चार, प्रस्रवण, यावत् रक्तरूप में अतः इस कारण से अमायी मनुष्य, विकुर्वणा नहीं करता।
मायी मनुष्य उस स्थान की आलोचना और प्रतिक्रमण किये बिना (यदि) काल करता है, तो उसके आराधना नहीं होती। (किन्तु) उस (विराधना-) स्थान के विषय में पश्चात्ताप करके अमायी (बना हुआ) मनुष्य (यदि) आलोचना और प्रतिक्रमण करके काल करता है, तो उसके आराधना होती है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार।
शतक-३- उद्देशक-५ सूत्र-१८९
भगवन् ! क्या भावितात्मा अनगार, बाहर के पुद्गलों को ग्रहण किए बिना एक बड़े स्त्रीरूप यावत् स्यन्दमानिका रूप की विकुर्वणा करने में समर्थ है? भगवन् ! भावितात्मा अनगार, बाहर के पुद्गलों को ग्रहण करके क्या एक बड़े स्त्रीरूप की यावत् स्यन्दमानिका रूप की विकुर्वणा कर सकता है ? हाँ, गौतम ! वह वैसा कर सकता है।
भगवन् ! भावितात्मा अनगार, कितने स्त्रीरूपों की विकुर्वणा करने में समर्थ है ? हे गौतम ! जैसे कोई युवक, अपने हाथ से युवती के हाथ को पकड़ लेता है, अथवा जैसे चक्र की धुरी आरों से व्याप्त होती है, इसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी वैक्रिय समुद्घात से समवहत होकर सम्पूर्ण जम्बूद्वीप को, बहुत-से स्त्रीरूपों से आकीर्ण, व्यतिकीर्ण यावत कर सकता है: हे गौतम ! भावितात्मा अनगार का यह विषय है. विषयमान है. उसने इतनी वैक्रियशक्ति सम्प्राप्त होने पर भी कभी इतनी विक्रिया की नहीं, करता नहीं और करेगा भी नहीं। इस प्रकार से यावत स्यन्दमानिका-रूपविकुर्वणा करने तक कहना।।
(हे भगवन् !) जैसे कोई पुरुष तलवार और चर्मपात्र (हाथ में) लेकर जाता है, क्या उसी प्रकार कोई भावितात्मा अनगार की तलवार और ढाल हाथ में लिए हुए किसी कार्यवश स्वयं आकाश में ऊपर उड़ सकता है ? हाँ, (गौतम!) वह ऊपर उड़ सकता है। भगवन् ! भावितात्मा अनगार कार्यवश तलवार एवं ढ़ाल हाथ में लिए हुए पुरुष के जैसे कितने रूपों की विकुर्वणा कर सकता है ? गौतम ! जैसे कोई युवक अपने हाथ से युवती के हाथ को पकड़ लेता है, यावत् (वैक्रियकृत रूपों से सम्पूर्ण जम्बूद्वीप को ठसाठस भर सकता है;) किन्तु कभी इतने वैक्रियकृत रूप बनाये नहीं, बनाता नहीं और बनायेगा भी नहीं।
जैसे कोई पुरुष एक पताका लेकर गमन करता है, इसी प्रकार क्या भावितात्मा अनगार भी कार्यवश हाथ में एक पताका लेकर स्वयं ऊपर आकाश में उड़ सकता है ? हाँ, गौतम ! वह आकाश में उड़ सकता है । भगवन् ! भावितात्मा अनगार, कार्यवश हाथ में एक पताका लेकर चलने वाले पुरुष के जैसे कितने रूपों की विकुर्वणा कर सकता है ? गौतम ! यहाँ सब पहले की तरह कहना चाहिए, परन्तु कदापि इतने रूपों की विकुर्वणा की नहीं, करता नहीं और करेगा भी नहीं । इसी तरह दोनों ओर पताका लिए हुए पुरुष के जैसे रूपों की विकुर्वणा के सम्बन्ध में कहना चाहिए।
भगवन् ! जैसे कोई पुरुष एक तरफ यज्ञोपवित धारण करके चलता है, उसी तरह क्या भावितात्मा अनगार भी कार्यवश एक तरफ यज्ञोपवित धारण किये हुए पुरुष की तरह स्वयं ऊपर आकाश में उड़ सकता है ? हाँ, गौतम ! उड़ सकता है । भगवन् ! भावितात्मा अनगार कार्यवश एक तरफ यज्ञोपवित धारण किये हुए पुरुष के जैसे कितने रूपों की विकुर्वणा कर सकता है ? गौतम ! पहले कहे अनुसार जान लेना चाहिए । परन्तु इतने रूपों की विकुर्वणा कभी की नहीं, करता नहीं और करेगा भी नहीं । इसी तरह दोनों ओर यज्ञोपवित धारण किये हुए पुरुष की तरह रूपों की विकुर्वणा करने के सम्बन्ध में भी जान लेना चाहिए।
भगवन् ! जैसे कोई पुरुष, एक तरफ पल्हथी (पालथी) मार कर बैठे, इसी तरह क्या भावितात्मा अनगार भी रूप बनाकर स्वयं आकाश में उड़ सकता है ? हे गौतम ! पूर्ववत् जानना । यावत् इतने विकुर्वितरूप कभी बनाए नहीं, बनाता नहीं और बनायेगा भी नहीं । इसी तरह दोनों तरफ पल्हथी लगानेवाले पुरुष के समान रूप-विकुर्वणा जानना
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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