Book Title: Agam 05 Bhagwati Sutra Part 01 Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
View full book text
________________
आगम सूत्र ५, अंगसूत्र- ५, 'भगवती / व्याख्याप्रज्ञप्ति-1'
शतक/ शतकशतक / उद्देशक / सूत्रांक असुरकुमार देव उन अप्सराओं के साथ दिव्य भोग भोग सकते हैं- यदि आदर न करे, उनका स्वामीरूप में स्वीकार न करे तो, असुरकुमार देव उन अप्सराओं के साथ दिव्य एवं भोग्य भोगों को नहीं भोग सकते । हे गौतम! इस कारण से असुरकुमार देव सौधर्मकल्प तक गए हैं, (जाते हैं) और जाएंगे।
सूत्र - १७१
भगवन् ! कितने काल में असुरकुमार देव ऊर्ध्व-गमन करते हैं, तथा सौधर्मकल्प तक ऊपर गए हैं, जाते हैं और जाएंगे ? गौतम । अनन्त उत्सर्पिणी-काल और अनन्त अवसर्पिणीकाल व्यतीत होने के पश्चात् लोक में आश्चर्यभूत यह भाव समुत्पन्न होता है कि असुरकुमार देव ऊर्ध्वगमन करते हैं, यावत् सौधर्मकल्प तक जाते हैं।
भगवन्! किसका आश्रय लेकर असुरकुमार देव ऊर्ध्वगमन करते हैं, यावत् ऊपर सौधर्मकल्प तक जाते हैं? गौतम ! जिस प्रकार यहाँ शबर, बर्बर, टंकण या चुर्चुक, प्रश्नक अथवा पुलिन्द जाति के लोग किसी बड़े अरण्य का, गड्ढे का, दुर्ग का, गुफा का, किसी विषम स्थान का, अथवा पर्वत का आश्रय लेकर एक महान् एवं व्यवस्थित अश्ववाहिनी को, गजावाहिनी को, पैदलसेना को अथवा धनुर्धारियों को आकुल व्याकुल कर देते हैं; इसी प्रकार असुरकुमार देव भी अरिहंतों का या अरिहंतदेव के चैत्यों का अथवा भावितात्मा अनगारों का आश्रय लेकर ऊर्ध्वगमन करते हैं, यावत् सौधर्मकल्प तक ऊपर जाते हैं।
भगवन् । क्या सभी असुरकुमार देव सौधर्मकल्प तक यावत् ऊर्ध्वगमन करते हैं? गौतम यह अर्थ समर्थ नहीं है। किन्तु महती ऋद्धि वाले असुरकुमार देव ही यावत् सौधर्म देवलोक तक ऊपर जाते हैं। हे भगवन् ! क्या असुरेन्द्र असुरराज चमर भी पहले कभी ऊपर यावत् सौधर्मकल्प तक ऊर्ध्वगमन कर चूका है? हाँ, गौतम । यह असुरेन्द्र असुरराज चमर भी पहले ऊपर- यावत् सौधर्मकल्प तक ऊर्ध्वगमन कर चूका है।
अहो, भगवन् । (आश्चर्य है), असुरेन्द्र असुरराज चमर ऐसी महाऋद्धि एवं महाद्युति वाला है तो हे भगवन् उसकी वह दिव्य देवऋद्धि यावत् दिव्य देवप्रभाव कहाँ गया, कहाँ प्रविष्ट हुआ? गौतम यहाँ भी कूटाकारशाला का दृष्टान्त कहना चाहिए ।
!
सूत्र - १७२
J
भगवन् ! असुरेन्द्र असुरराज चमर को वह दिव्य देवऋद्धि और यावत् वह सब, किस प्रकार उपलब्ध हुई, प्राप्त हुई और अभिसमन्वागत हुई ? हे गौतम! उस काल और उस समय में इसी जम्बूद्वीप नामक द्वीप में, भारत वर्ष (क्षेत्र) में, विन्ध्याचल की तलहटी में बेभेल' नामक सन्निवेश था। वहाँ पूरण नामक एक गृहपति रहता था । वह आढ्य और दीप्त था । यहाँ तामली की तरह पूरण गृहपति की सारी वक्तव्यता जान लेनी चाहिए । विशेष यह है कि चार खानों वाला काष्ठमय पात्र बनाकर यावत् विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम रूप चतुर्विध आहार बनवाकर ज्ञातिजनों आदि को भोजन करा कर तथा उनके समक्ष ज्येष्ठ पुत्र को कुटुम्ब का भार सौंपकर यावत् स्वयमेव चार खान वाले काष्ठपात्र को लेकर मुण्डित होकर दानामा नामक प्रव्रज्या अंगीकार की ।
प्रव्रजित हो जाने पर उसने पूर्ववर्णित तामली तापस की तरह सब प्रकार से तपश्चर्या की, आतापना भूमि में आतापना लेने लगा, इत्यादि सब कथन पूर्ववत् जानना; यावत् वह आतापना भूमि से नीचे ऊतरा । फिर स्वयमेव चार खानों वाला काष्ठमय पात्र लेकर बेभेल' सन्निवेश में ऊंच, नीच और मध्यम कुलों के गृहसमुदाय से भिक्षा-विधि भिक्षाचरी करने के लिए घूमा । भिक्षाटन करते हुए उसने इस प्रकार का विचार किया- मेरे भिक्षापात्र के पहले खाने में
कुछ भिक्षा पड़ेगी उसे मार्ग में मिलने वाले पथिकों को दे देना है, मेरे (पात्र के) दूसरे खाने में जो कुछ (खाद्यवस्तु) प्राप्त होगी, वह मुझे कौओं और कुत्तों को दे देनी है, जो (भोज्यपदार्थ) मेरे तीसरे खाने में आएगा, वह मछलियों और कछुओं को दे देना है और चौथे खाने में जो भिक्षा प्राप्त होगी, वह स्वयं आहार करना है। इस प्रकार भलीभाँति विचार करके कल (दूसरे दिन रात्रि व्यतीत होने पर प्रभातकालीन प्रकाश होते ही यावत् वह दीक्षित हो गया, काष्ठपात्र के चौथे खाने में जो भोजन पड़ता है, उसका आहार स्वयं करता है ।
तदनन्तर पूरण बालतपस्वी उस उदार, विपुल, प्रदत्त और प्रगृहीत बालतपश्चरण के कारण शुष्क एवं रूक्ष हो
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " ( भगवती )" आगमसूत्र - हिन्द-अनुवाद”
Page 69