Book Title: Agam 05 Bhagwati Sutra Part 01 Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
View full book text
________________
आगम सूत्र ५, अंगसूत्र- ५, 'भगवती / व्याख्याप्रज्ञप्ति-1 '
शतक/ शतकशतक / उद्देशक / सूत्रांक बाहर नीकले और अत्वरित गति से यावत् ईर्या-शोधन करते हुए जहाँ गुणशीलक चैत्य था, और जहाँ श्रमण भगवान महावीर विराजमान थे, वहाँ उनके पास आए। गमनागमन सम्बन्धी प्रतिक्रमण किया, एषणादोषों की आलोचना की, फिर आहार-पानी भगवान को दिखाया । तत्पश्चात् श्रीगौतमस्वामी ने श्रमण भगवान महावीर से यावत् निवेदन किया- भगवन् ! मैं आपसे आज्ञा प्राप्त करके राजगृहनगर में उच्च नीच और मध्यम कुलों में भिक्षा-चर्या की विधिपूर्वक भिक्षाटन कर रहा था, उस समय बहुत से लोगों के मुख से इस प्रकार के उद्गार सूने कि तुंगिका नगरी के बाहर पुष्पवतिक नामक उद्यान में पार्श्वापत्यीय स्थविर भगवंत पधारे थे, उनसे वहाँ के श्रमणोपासकों ने इस प्रकार प्रश्न पूछे थे कि भगवन् ! संयम का क्या फल है ? और तप का क्या फल है ? यावत् यह बात सत्य है, इसलिए कही है, किन्तु हमने आत्मभाव के वश होकर नहीं कही ।
,
हे भगवन् ! क्या वे स्थविर भगवंत उन श्रमणोपासकों के प्रश्नों के ये और इस प्रकार के उत्तर देनेमें समर्थ हैं, अथवा असमर्थ हैं ? भगवन् ! उन श्रमणोपासकों को ऐसा उत्तर देनेमें वे सम्यक्रूप से ज्ञानप्राप्त हैं, अथवा असम्पन्न या अनभ्यस्त हैं? भगवन्! उन श्रमणोपासकों को ऐसा उत्तर देनेमें वे उपयोगवाले हैं या उपयोगवाले नहीं हैं? भगवन् क्या वे स्थविर भगवंत उन श्रमणोपासकों को ऐसा उत्तर देने में विशिष्ट ज्ञानवान् हैं, अथवा विशेष ज्ञानी नहीं हैं कि आर्यो । पूर्वतप से दवता देवलोकों में उत्पन्न होते हैं, तथा पूर्वसंयम से, कर्मिता से और संगिता (आसक्ति) के कारण देवता देवलोकों में उत्पन्न होते हैं। यह बात सत्य है, इसलिए हम कहते हैं, किन्तु अपने अहंभाव वश नहीं कहते हैं?
!
हे गौतम! वे स्थविर भगवंत उन श्रमणोपासकों को इस प्रकार के उत्तर देने में समर्थ हैं, असमर्थ नहीं; यावत् वे सम्यक् रूप से सम्पन्न हैं अथवा अभ्यस्त हैं; असम्पन्न या अनभ्यस्त नहीं; वे उपयोग वाले हैं, अनुपयोग वाले नहीं: वे विशिष्ट ज्ञानी हैं, सामान्य ज्ञानी नहीं। यह बात सत्य है, इसलिए उन स्थविरों ने कही है, किन्तु अपने अहंभाव के वश होकर नहीं कही। हे गौतम मैं भी इसी प्रकार कहता हूँ, भाषण करता हूँ, बताता हूँ और प्ररूपणा करता हूँ कि पूर्वतप के कारण से देवता देवलोकों में उत्पन्न होते हैं, पूर्वसंयम के कारण देव देवलोकों में उत्पन्न होते हैं, कर्मिता से देव देवलोकों में उत्पन्न होते हैं तथा संगिता (आसक्ति) के कारण देवता देवलोकों में उत्पन्न होते हैं। आर्यो ! पूर्वतप से, पूर्वसंयम से, कर्मिता और संगिता से देवता देवलोकों में उत्पन्न होते हैं । यही बात सत्य है; इसलिए उन्होंने कही है, किन्तु अपनी अहंता प्रदर्शित करने के लिए नहीं कही ।
सूत्र- १३५
भगवन् ! तथारूप श्रमण या माहन की पर्युपासना करने वाले मनुष्य को उसकी पर्युपासना का क्या फल मिलता है ? गौतम ! तथारूप श्रमण या माहन के पर्युपासक को उसकी पर्युपासना का फल होता है- श्रवण ।
!
भगवन् ! उस श्रवण का क्या फल होता है ? गौतम ! श्रवण का फल ज्ञान है । भगवन् ! उन ज्ञान का क्या फल है ? गौतम ज्ञान का फल विज्ञान है। भगवन् उस विज्ञान का क्या फल होता है ? गौतम विज्ञान का फल प्रत्याख्यान है । भगवन् ! प्रत्याख्यान का क्या फल होता है ? गौतम ! प्रत्याख्यान का फल संयम है । भगवन् ! संयम का क्या फल होता है ? गौतम संयम का फल संवर है। इसी तरह अनाश्रवत्व का फल तप है, तप का फल व्यवदान (कर्मनाश) है और व्यवदान का फल अक्रिया है। भगवन् उस अक्रिया का क्या फल है ? गौतम अक्रिया का अन्तिम फल सिद्धि है ।
!
!
सूत्र - १३६
(पर्युपासना का प्रथम फल) श्रवण, (श्रवण का फल) ज्ञान, (ज्ञान का फल) विज्ञान, (विज्ञान का फल) प्रत्याख्यान (प्रत्याख्यान का फल) संयम, (संयम का फल) अनाश्रवत्व, (अनाश्रवत्व का फल) तप, तप का फल) व्यवदान, (व्यवदान का फल) अक्रिया और (अक्रिया का फल) सिद्धि है ।
सूत्र - १३७
भगवन्! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं, भाषण करते हैं. बतलाते हैं और प्ररूपणा करते हैं कि राजगृह नगर के बाहर वैभारगिरि के नीचे एक महान (बड़ा भारी ) पानी का ह्रद है । उसकी लम्बाई-चौड़ाई अनेक योजन है।
T
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " ( भगवती )" आगमसूत्र - हिन्द-अनुवाद”
Page 52