Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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छठा शतक : उद्देशक-१ वेमायाए वेदणं वेदेति, नो अकरणतो।
[१० प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिकों के लिए भी इसी प्रकार प्रश्न है (क्या पृथ्वीकायिक जीव करण द्वारा ...... नहीं।)
[१० उ.] गौतम ! (पृथ्वीकायिक जीव करण द्वारा वेदना वेदते हैं, किन्तु अकरण द्वारा नहीं।) शेष यह है कि इनके ये करण शुभाशुभ होने से ये करण द्वारा विमात्रा से (विविध प्रकार से) वेदना वेदते हैं; किन्तु अकरण द्वारा नहीं। अर्थात्-पृथ्वीकायिक जीव शुभकरण होने से सातावेदना वेदते हैं और कदाचित् अशुभकरण होने से असातावेदना वेदते हैं।
११. ओरालियसरीरा सव्वे सुभासुभेणं वेमायाए।
[११] औदारिक शरीर वाले सभी जीव (पांच स्थावर, तीन विकलेन्द्रिय, तियञ्चपञ्चेन्द्रिय और मनुष्य) शुभाशुभ करण द्वारा विमात्रा से वेदना (कदाचित् सातावेदना और कदाचित् असातावेदना) वेदते हैं।
१२. देवा सुभेणं सातं। . [१२] देव (चारों प्रकार के देव) शुभकरण द्वारा सातावेदना वेदते हैं।
विवेचन–चौबीस दण्डकों में करण की अपेक्षा साता-असातावेदना की प्ररूपणा - प्रस्तुत आठ सूत्रों (सू. ५ से १२ तक) में करण के चार प्रकार बता कर समस्त संसारी जीवों में इन्ही शुभाशुभ करणों के द्वारा साता-असातावेदना के वेदन की प्ररूपणा की गई है। - चार करणों का स्वरूप - वेदना का मुख्या कारण करण है, फिर चाहे वह शुभ हो या अशुभ। मनसम्बन्धी, वचनसम्बन्धी, कायसम्बन्धी और कर्मविषयक, ये चार करण होते हैं। कर्म के बन्धन, संक्रमण आदि के निमित्तभूत जीव के वीर्य को कर्मकरण कहते हैं।' जीवों में वेदना और निर्जरा से सम्बन्धित चतर्भगी का निरूपण
१३.[१] जीवा णं भंते ! किं महावेदणा महानिजरा ? महावेदणा अप्पनिजरा ? अप्पवेदणा महानिजरा ? अप्पवेदणा अप्पनिजरा? .
गोयमा ! अत्थेगइया जीवा महावेदणा महानिजरा, अत्थेगइया जीवा महावेदणा अप्पनिजरा, अत्थेगइया जीवा अप्पवेदणा महानिजरा, अत्थेगइया जीवा अप्पवेदणा अप्पनिजरा।
[१३-१ प्र.] भगवन् ! जीव, (क्या) महावेदना और महानिर्जरा वाले हैं, महावेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं, अल्पवेदना और महानिर्जरा वाले हैं, अथवा अल्पवेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं ?
[१३-१ उ.] गौतम ! कितने ही जीव महावेदना और महानिर्जरा वाले हैं, कितने ही जीव महावेदना
भगवती. सूत्र अ. वृत्ति प्रत्रांक २५२