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प्राचार्य श्री तुलसी आप परम पूजनीय आचार्यश्री कालुगणीके शिष्य बने । ११ वर्ष उनकी चरण-सेवामे रहकर आपने शिक्षा ग्रहण की। २२ वपकी अवस्था (वि० सं० १६६३ ) मे कालुगणीने आपको आचार्य-पद का भार सौंपा। उसके बाद आपने ११ वर्षका अपना अधिकाश समय और चिन्तन साधु-समाजके बहुमुखी विकासकी ओर लगाया। चालू अध्याय जन-जीवनके जागरणका उद्देश्य लिये हुए है। यह आपका जीवन-वृत्तान्त है।
१-इम विपयकी विशेष जानकारीके लिए देखो जयपुर-यात्रा, पजाव यात्रा व दिल्ली-यात्रा।