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सघका नेतृत्व
मघराज पाट माणकलाल
माणकलाल पाट ढालचन्द्र
डालचन्द पाट कालूराम
कालुराम पाट तुलसीराम
विनयवत श्राज्ञा मर्यादा प्रमाणे
चालमी सुखी होसी ( सम्वत् १९९३ भादवा प्रथम सुदी ३ गुरुवार ) "
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ममृचे संघमे हर्ष की लहर दौड़ गई। योग्यतम धर्मनेताको पा सबको गौरव अनुभव हुआ । समूचा संघ चिन्ताविमुक्त हो
गया ।।
तेरापन्थ भावी व्यवस्थाका भार एकमात्र आचार्य पर होना है। एसमे दूसरे किसीकी पंचायत नहीं होती । आचार्य जिसे योग्य समझें, इसे अपना उत्तराधिकारी चुन लेते हैं। वही समूचे संपको बिना किसी 'ननु' 'नच' के मान्य होता है 1 न इनमें किसीके मतफी अपेक्षा होती है, न सलाह की ।
आपाय से अपना सबसे महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व मानते है । फिर भी फाल्गणीके अस्वास्थ्यको देखते हुए भावी व्यवस्थाका न होना पये लिए चिन्ताका कारण था । एवाधिनायरतामे पूर्वापाद्वारा भाषी आचार्य न चुना जाये ना पण भविष्य समस्यामय पन जाता है। पिन्तु महामनीषी गुरुदेव वसीय पित्तार पानेवाले नहीं थे। उन्होंने अपना मगर दिव