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प्रवचनकी पंखुडिया
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को सावधान रहना चाहिए । आत्मोत्साहमे भौतिक साधनों का महत्त्व गौण है । धर्मकी प्रतिष्ठा धार्मिक प्रवृत्तियोंसे ही बढ़ सकती है ।
आप धर्ममे ज्ञान और श्रद्धाका पूर्ण सामञ्जस्य चाहते है । आपकी दृष्टिमे पुरुषों से जहा ज्ञान है, वहा श्रद्धाकी कमी है। महिलाएं श्रद्धा से परिपूर्ण है तो ज्ञानमे पीछे है। दोनों ओर अधूरापन है । आपने महिलाओं की सभा मे भाषण करते हुए
कहा
" ज्ञान के बिना श्रद्धा अधूरी है । संस्कारी महिलाएं अपनी सन्ततिके लिए सच्ची अध्यापिकाएं होती है। उनके अज्ञानका परिणाम सन्ततिको भी भोगना पड़ता है ।"
धर्मी अगाध श्रद्धा से निकली हुई क्रान्ति-वाणी व्यवहार पर कैसा प्रतिविम्व डालती है, उस पर भी हमे सरसरी दृष्टि डाल लेनी चाहिए ।
'नवीनता और प्राचीनता,' 'युवक और वृद्ध आदि अवाञ्छनीय समस्याओंको सुलझानेमे आप बहुत सफल हुए है। इस बारेमे मैं आपकी वहुमूल्य वाणीको रखने में कृपण वनना पसन्द नहीं करूंगा। आपने बार-बार जनताको समझाया. -
"अमुक वस्तु नयी है, इसलिए बुरी है एवं अमुक वस्तु पुरानी है, इसलिए अच्छी है, यह कोई उपयुक्त तर्क नहीं । केवल प्राचीनता या नवीनता ही अच्छेपनकी कसौटी नहीं कही जा सकती । सभी नई वस्तुएं नई होने के नाते ही अच्छी है या