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विचारककी वीणाका झकार
१०१ चहता है । स्वयंको सुधारे बिना समाजका सुधार नहीं होसकता। अपनी बुराईका प्रतिकार किये बिना समाजके सुधारकी बात सोचना धर्मकी मौलिकताको न समझनेका परिणाम है। धम व्यक्तिनिष्ठ होता है। वह कहता है-प्रत्येकका सुधार ही समाज का सुधार है।" ___ आप पर-सुधारसे पहले आत्म-सुधारको आवश्यक समझते हैं। कोरी सुधारकी बातोंसे कुछ वनता नहीं। लोग धर्मके प्रति गाढ श्रद्धा दिखाते है। उसके स्थायित्व की चिन्ता करते है। किन्तु विवेक, मर्यादाको नहीं निभाते । आप उन्हें कडी चेतावनी देते है :____ "लोगोंको इस बातकी चिन्ता है कि कहीं साम्यवाद आगया तो हमारे धर्म-कम मिट जायेंगे। मैं पूछना चाहता हूं-यह हृदय की बात है या बनावटी १ यदि सचमुच चिन्ता है तो संग्रह क्यों ? संग्रहका अर्थ है धर्मका नाश, पापका पोपण | दूसरेका पैसा चुराये बिना, अधिकार लूटे विना पूजीका केन्द्रीकरण हो नहीं सकता ?" ___ राजनैतिक सत्ताका राष्ट्रकी भौतिक समस्याओसे सम्बन्ध है। इसलिए धार्मिकों को डरनेकी कोई आवश्यकता नहीं। किसी पार्टीका शासन हो, धर्मका फ्या विगाड सकता है। विशुद्ध धर्म न उसके हितोंमे वाधक बनता और न उसको जनताके धार्मिक भावोंमे वाधक बनना चाहिए। धर्मका कहीं भी कुछ मात्राम विरोध हुआ है, वह विशुद्ध धर्मका नहीं, धर्मके वेषमे पनपनेवाला