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वार्षिक कार्यक्रम
१६७ वे दूसरोंके लिए तभी सम्भाव्य बनती है, जब आपकी सतत साधना उन्हें सम्पन्न किये देती है।
चतुर्माससे दो महत्त्वपूर्ण उत्सव होते है-एक भाद्र शुक्ला नवमीको आपके पट्टारोहण-दिनके उपलक्षमे दूसरा भाद्र-शुक्ला त्रयोदशीको आचार्य भिक्षुके चरम-दिनकी पुण्य स्मृतिमे। इनमे साधु-साध्वियोंका वह स्फूर्तिदायक मिलाप नहीं होता, बाकी सारा कार्य-क्रम माघ-महोत्सवकी स्मृतिको ताजा करनेवाला होता है। विशेष बात नवमीको पूर्ववर्ती ८ आचार्योका ससम्मान प्रतिनिधित्व करते हुए आप नो नीति सम्पादन करते है, तब आपका व्यक्तित्व बहुमुखी-सा प्रतीत होता है। तेरसको आप
आचार्य भिक्षुको श्रद्धाजलि अर्पण करते-करते स्वयं आचार्य भिक्षु __ बन जाते है। उनकी आत्मा आपमें प्रतिबिम्बित हो उठती है । ___ उनका त्याग और आत्म-उत्सर्ग साकार हो बोल उठता है । जैसा
कि श्री हरिभाऊ उपाध्याय ( अजमेर राज्यके मुख्य मन्त्री) ने अपने एक *पत्रमे लिखा है
'पूज्य स्वामी भिक्षुजीके चरित्र और आपका आजका तद्विषयक व्याख्यान मुझे बहुत प्रभावकारी मालूम हुआ । ऐसा लगा मानो उनकी आत्मा आपमें बोल रही हो।"
आचार-विचार, साहित्य-संस्कृति, कला-कौशलका उन्नयन करनेके साथ-साथ कठोर चर्या, उत्कट अनासक्ति, उपवास, मौन
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