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आचार्य श्री तुलसी बालक, युवा, वृद्ध, सभ्य और ग्रामीण सबके साथ उनके जैसा बनकर व्यवहार करना, यह आपकी अलौकिक शक्ति है। ___ आप आदर्शवादी होते हुए भी व्यवहारकी भूमिकासे दूर नहीं रहते । आज नई और पुरानी परम्पराओंका संघर्प चल रहा है। आधुनिक आदमी पुरानी परम्पराको रूढ़ि कहकर उसे तोडना चाहता है। उधर पुराने विचारवाले नये रीति-रिवाजोको पसन्द नहीं करते, यह एक उलझन है। आचार्यश्री इनको मिलानेवाली कड़ी है। आपमे नवीनता और प्राचीनताका अद्भुत सम्मिश्रण है इसे देखकर हमे महाकवि कालीदासकी सूक्तिका स्मरण हो आता है :
"पुराणमित्येव न साधु सर्व, न चापि नवमित्यवद्यम् । सन्त परीक्ष्यान्यतरद् भजन्ते,
मूढ परप्रत्ययनेयबुद्धि । एक विपयको दश बार स्पष्ट करते-करते भी आप नहीं मल्लाते, तब आपकी क्षमा वृत्ति दर्शकोंको मन्त्रमुग्ध किये बिना नहीं रहती।
आपके उदात्त विचार जनताके लिए आकर्षणके केन्द्र है।। कथनी और करनीमे समानता होना 'यथावादी तथकारी' के जैनत्वका द्योतक है । अध्यात्मवादी विन्दुके आस-पास घूमनेवाले
* मालविकाग्निमित्र