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स्फुट प्रनग
हैं। बाकी रहती है बात वाणी द्वारा व्यक्त करने की ।
मानवका जीवन - प्रासाद आचार-विचारके विशाल खम्भों पर बनता है। सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य और अनाशक्ति ये एक कोटिके है । दूसरी कोटिके है - क्षमा, धर्य, औदार्य, नम्रता, सरलता आदि आदि । आपसे दोनों प्रकारके गुण इस प्रकार छला - छल भरे है कि उन्हें समझने के लिए कविकी कल्पना और दार्शनिकका चिन्तन अधीर हो उठता है ।
नैरन्तरिक कठोर श्रम, सुदृढ़ अध्यवसाय देखते ही बनते हैं । रातके चार बजेसे कार्यक्रम शुरू होता है, वह दूसरी रातके दश वजे तक चलता रहता है । आहारका समय भी किसी अध्यवसाय या चिन्तनसे अधिक बार खाली नहीं जाता। स्वाध्याय, मनन, चिन्तन, अध्यापन, व्याख्यान, आगन्तुक व्यक्तियोंसे वातचीत, इस प्रकार एकके बाद दूसरे कार्यकी ला जुडी रहती है ।
आपमें जन-उद्धारकी विभिन्न उमंगे इस प्रकार उछाले भरती है, मानो आकाश-मण्डलको पखारने के लिए समुद्रकी उमिया हल रही हों ।
परिस्थितियों का सामना करने की क्षमता अपना अलग महत्व रखती है। आपने इस पन्द्रवर्षीय नेतृत्वमे संपके उपर छाई अनेक परिस्थितियोंका अपूर्व कौशल के साथ सामना चिा है । इस विषय में 'कम बोलना, कार्य करते रहना' आपकी यह नीति बहुत सफल हुई है ।