Book Title: Acharya Shree Tulsi
Author(s): Nathmalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 212
________________ आचार्य श्री तुलसी अहिंसा धर्म है और धर्म पर ही दुनियाकी सारी चीजें आधारित है । यदि धर्मका नाश हो जाय तो चमकनेवाले चाद और सूर्यका भी नाश होय । मेरे पास ओर कुछ नहीं, एक यही लगन है कि श्रहिंसा से ही कुछ होनेवाला है । में जी रहा हू केवल इसी श्रद्धाके बल पर । तुलसीजी से हमारे सर्वस्वकी रक्षा हो गई। जो अपनेको तुलसीजी का अनुयायी मानते है, वे स्वयं अनुभव करते होगे कि तुलसीजीमे उन्हे कितनी शक्ति मिलती है और यदि वे ऐसा नहीं समझते तो इसका मतलब होगा कि वे तुलसीजीके पास पहुचने के लिए भेडियाघसान करते है । उनके अनुयायी यह समझते होगे कि उनसे उन्हे कितनी शक्ति मिलती है | उन्हे चाहिए कि वे उनकी शक्तिको अपने में सन्निहित करे क्योकि शक्तिका ही सम्पूर्ण विश्वमे प्रभाव है । उनमे महाशक्ति है | हमे चाहिए कि शक्ति प्राये तो हम उसे सोखले, हम उसका स्पर्श करे । उसी शक्ति से हम अपना भोग प्राप्त करे। हमे चाहिए कि हम उन महापुरुपकी शक्ति अपनी शक्तिको भी मिला दे । जिस प्रकार अन्य नदियोंके मिलने से गङ्गामे महाशक्ति या जाती है और ग्रन्य नदिया भी गगासे शक्ति प्राप्त करती है, उसी प्रकार आचार्यश्री तुलसीकी शक्ति यदि हम अपना शक्ति भी मिला द तो महाशवित हा जायगी ।" १८८ महापुरुष के जीवन-सरोवरमे हंस होकर तैरना, क्षीर- नीर विवेक करना सहज नही होता। फिर भी इससे प्रधान भाव मानसकी गतिका है । हम प्रत्येक वस्तुको अपपूण दर्शन नानेसे पूर्व उसके औचित्यको हृदयङ्गम कर लेते

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