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स्फुट प्रसंग
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अध्यात्मवादी, दूसरे शब्दो मे आत्मौपम्यवादी बनाना चाहते हैं । यहीं से उनके जीवनका दिव्य आलोक निखरता है, यहींसे युगको बदलनेवाली व्यक्तिताकी निगृढ सम्भावनाएं हमारी धारणाओंको पहति करती है ।
हिन्दी जगत् के सुप्रसिद्ध साहित्यकार और विचारक श्री जैनेन्द्रकुमारने आचार्यश्री के व्यक्तित्वका नपे-तुले शब्दो मे विश्लेषण करते हुए कहा :
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"जैन आचार्य श्री तुलमोगणीसे में मिला और उनके व्यक्तित्व से इतना प्रभावित हुआ कि प्रति शीघ्र उनके सम्पर्क में था गया । मे तेरापन्थी नही हू प्रोर जैन भी हू या नहीं, इसे जंन ही वतला सकते ई | कोई वाद या मत लेकर नहीं, वरन् केवल इन्शान के रूपमें तुलसीजो के सामने में गया पर उनके अन्तरगको छाप मुझ पर एसी पट्टी कि में अपनेको भूल सा गया । तुलसीजी शान्तिप्रिय और बिना किसी वादके व्यक्ति है | उनका व्यक्तित्व इस श्रद्धाम पना हना है कि ग्रहिमा मे ही सारी समस्यायें हल हो सकती है । पहले तो मुझ का होतो थो कि हमसे ही सारी समस्याओ का समाधान फेने नभव है परंतु इनकी तह तक पहुचने पर मेरी दावा दूर हो गई। तुत्सीजन यह विश्वास है कि जीवनमा माग महिला द्वारा है, जिसका एक प है । उनी मी दिवान्धारावी छाप मेरे उपर साप
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मेरी श्रद्धा से ही हमी
गई।
भारत वर्ष १२ मा जनवरी १९५२
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