Book Title: Acharya Shree Tulsi
Author(s): Nathmalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 206
________________ १८२ आचार्य श्री तुलसी डाले हुए था। २५वें दिन यह रहस्य खुला। काठियावाड (सौराष्ट्र) से समाचार आये लोगोंकी भावनामें यकायक परिवर्तन आया है, चातुर्मासके लिए बाकानेर और जोरावरनगरमे स्थानका प्रबन्ध हो गया। साध्वी रुपाजीको पहले ही चूडामें स्थान मिल चुका है। और सब व्यवस्था ठीक है। आचार्यश्रीने साधु-साध्वियोंके बीच वहांके साधु-साध्वियोंके साहसकी सराहना करते हुए कहा- देखो वे कितने कष्ट झेल रहे है। हमे यहाँ बैठे-बैठे वैसा मौका नहीं मिलता। फिर भी हमारो और उनकी आत्मानुभति एक है। इन कई दिनोंसे मेरे अल्पाहारको लेकर एक प्रश्न चल रहा। किन्तु मै पूरा आहार लेता कैसे ? मेरे साधु-साध्वियां वहां जो कठिनाई सह रहे है, उनके साथ हमारी सहानुभूति होनी ही चाहिए। ___ आचार्यश्रीकी सात्त्विक प्रेरणासे वहाँकी भूमि प्रशस्त हुई, यह पहले किसने जाना। ___ रतननगरमें विद्यार्थी साधुओंने आचार्यके पास व्याकरणकी साधनिका शुरू की। दिनमे समय कम मिलता था, इसलिए वह मनोविनोद रातको चलती थी। साधनिका प्रारम्भ करते हुए आचार्यश्रीने एक श्लोक रचा : "नव मुनयो नवमुनय , कर्तु लग्ना नवा हि साघनिकाम् । नवमाचार्यममक्षे, नहि लप्स्यन्ते कथ नव ज्ञानम् ।।"

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