Book Title: Acharya Shree Tulsi
Author(s): Nathmalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 208
________________ आचार्य श्री तुलसी शिष्या समागता सर्वे, कि कर्तु साधना शुभाम् । भाविनी प्रार्थना पश्चा - दल्पोऽनेहा निरीक्ष्यते ||८|| यदा चित्त प्रसत्ति स्यात्, सुलभा श्लोकनिर्मिति । विपर्यासोऽन्यथा स्पष्ट, कि शिष्यंरपि नेक्ष्यते || ९ || मध्याह्न े समधीयाते, साध्व्यो व्याकरण सदा । तयोर्धन कुमार्येका, चान्या रत्नकुमारिका ॥ १० ॥ वृत्तिश्चापरवेलाया—माचाराङ्गस्य पठ्यते । , सम्मील्य बहुसाध्वीभि का कामास्या वदाम्यहम् ॥ ११ ॥ लाडा सत्यग्रणी तासा, साहाय्य कुरते सदा । साहाय्यमन्तरेणात्र, विद्यावोधि सुदुर्लभा ॥ १२ ॥ त्रयोदशाना श्लोकाना, निर्माण कृतवानिदम् । शीघ्र मनोविनोदाय, शिष्यबोधाय साग्रहम् ||१३|| व्यक्ति बड़ा नहीं होता । वडा होता है उसका व्यक्तित्व । वह क्या है ? इसे शब्दोंकी सीमा और परिधिमे वाधना सहज नहीं । फिर भी उपयोगिताकी दृष्टिसे हम मान लेते है - व्यक्तित्व यानी जीवनका उपयोग । दुनिया स्वार्थी ठहरी । वह उसीका व्यक्तित्व स्वीकार करती है, जिसके जीवनका उसके लिए उपयोग हो । जिसमे उच्च प्रतिभा चरित्र-वल और आकर्षण नहीं होता, वह अपने जीवन - पुष्पको उपयोगके धागेसे नहीं जोड सकता । इसलिए हमे व्यक्तित्वका फलित अर्थ करना चाहिए - प्रतिभा, चरित्र और आकर्षणकी महान् व्यक्तित्व असाधारणता । १८४

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