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स्फुट प्रसग शब्दों मे-अपना रोष शान्त करना और अपने प्रति रोष हो, उसे मिटाने की प्रार्थना करना। दोनों व्यक्ति समान भूमिका पर क्षमत और क्षमापण करें। वहाँ हल्की-भारी, ऊँची-नीची रही, इसका कोई प्रश्न ही नहीं उठता। ___ दोनों दलों के व्यक्ति आचार्यश्री से मार्ग-दर्शन पा कलह का अन्त करने को तैयार हो गये। थोड़े दिनों बाद आचार्यश्री के समक्ष दोनों ओर के व्यक्ति आगये। आचार्यश्री ने उन्हे फिर 'मैत्री' का महत्त्व समझाया। एक गीतिका रची। उसके द्वारा लोगोंको मैत्री के संकल्प को दृढ बननेकी प्रेरणा दी। उसके कुछ पद्य यों हैं.
"क्षमत-क्षमापण सप्ताक्षरनो, अर्थ अनोखो झाको। परनो खमण नमण तिम निजनो, भ्रमण मिट उभया को ।। भूलो भूतकालनी भूलो, आगामी
अनुकूलो। थारी म्हारी हल्की भारी, मत को झगडं झूलो ।। कादा छूत उखेल्या सेती, मूल हाप नहिं नावं । होय सरल चित सद्गुरु प्रागल, गुणिजन गुनह खमा ।"