Book Title: Acharya Shree Tulsi
Author(s): Nathmalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 203
________________ स्फुट प्रसग करे, भविष्य में फिर वह कार्य कभी न करे ।" आत्म-नियन्त्रणके लिए आपने 'दशवैकालिकसूत्र' की दो चूलिकाएं नियुक्त की । संयमीके लिए उनका वह स्थान है, जो घोडेके लिए लगाम, हाथीके लिए अंकुश और नौकाके लिए पताका का है । आपका मानस समुद्रके समान है, जो कि मर्यादामे रहते हुए भी उत्ताल उर्मियोंका साथ नहीं छोड़ता । पौद्गलिक पदार्थों के प्रति आप जितने सन्तुष्ट है, उससे कहीं आत्म जागरण के प्रति असन्तुष्ट हैं । इसी असन्तुष्टिसे 'आत्मचिन्तनम्', 'चिन्तनके तेरह सूत्र' और 'कर्तव्य - पट् - त्रिशिका' जैसे प्रसन्न मार्ग आपके द्वारा साधुओं को मिले । गृहस्थोंके प्रति भी आप उदासीन नहीं है । उनके लिए भी आपने 'आत्म-निरीक्षणके तिरेपन वोल' लिखे । आपके अविरत प्रयत्नोंसे इस दिशा मे एक नया स्रोत चला है । सिद्धान्तकी भाषा मे कहूं तो आध्यात्मिक चेतनाकी उत्क्रान्ति हुई है । विरोधको हंसते-हंसते सहना यों तो तेरापन्थका नसर्गिक भाव है, उसमे भी आचार्यश्रीकी अपनी निजी विशेषता है । आप न विरोधसे घबडाते हैं और न उसे बढ़ावा विरोध के प्रति देते । किन्तु उपेक्षा के द्वारा उसे निस्तेज बना देते है । मंत्री क्षमा और शान्तिके उपदेशका दूसरो पर कैसा असर होता है, वह आप एक छोटी सो घटनासे जान सकेंगे : आचार्यश्रीने धर्मप्रचारके लिए काठियावाड (मौराष्ट्र ) में १७९

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