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स्फुट प्रसग
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पहलुओं की भी यही बात है । कईबार इस तथ्यको पकड़ने मे साधुओं को भी सन्देह हो जाता है । कठोरताकी आशंकामे मृदुता और मृदुता की आशंकामे कठोरता या वे कभी-कभी सोचने लगते हैं कि क्या बात है ? आचार्यश्री कठोरताको काम मे ही नहीं लात, और कभी-कभी यह अनुभव होने लगता है कि आपके पास मृदुता नामकी कोई वस्तु है ही नहीं ।
प्रोत्साहनके दोनो अंग प्रशंसा और अनुग्रहकी भी यही गति है। किसीको साधारण कार्यपर ही प्रशंसा या अनुग्रह अथवा दोनोंसे प्रोत्साहित कर देते है तो कोई असाधरण कार्य करके भी कुछ नहीं पाता ।
आचायश्री ने एक बार अपनी कार्यप्रणाली पर प्रकाश डालते हुए कहा
" मेरे कार्यक्रमका मूल आधार है व्यक्ति का विकास। मैं जिसप्रकार जिस व्यक्तिके लाभ होता देखता हू, उसके साथ उसी तरीके से वरतता दूँ । इसलिए इसमे किसीको अधिक कल्पना करने की जरूरत नहीं है ।"
आहारसे प्रयोग निरन्तर चलते है । कईबार दो-दो सप्ताह तक आपके आहारमे सिर्फ शाक-रोटी ही होती है । अमुक खाने या न खानेसे शरीर तथा मन पर वस्तु पाहार- प्रयोग क्या असर होता है, इसकी एक लम्बी सूची अनुभव मे है । स्वाद-वृत्ति साधुके लिए निषिद्ध है. वह तो है ही, उसके
आपके