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वार्षिक कार्यक्रम
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बाहर से आये हुये साधु-साध्विया अपना वार्षिक कार्य-क्रम का विवरण-पत्र आचार्यश्री की सेवामे प्रस्तुत करते है ।
लगभग १२५ विवरण-पत्रोंका आचार्यश्री स्वयं निरीक्षण करते है । उनकी व्यवस्था करते हैं । प्रत्येक 'सिंघाड़े' की चर्या और रहन सहनका मौखिक विवरण सुनते है ।
शिशिर ऋतु जनता के लिए शरीर पोषणका काल है, तेरापंथ के लिए ऐक्य पोषणका और आचार्यश्री के लिए श्रमका काल है ।
वसन्त पंचमीसे आगामी वर्षकी व्यवस्था शुरू होती है । वह दृश्य बड़ा मनहारी होता है, जब आचार्यश्री साधु-साध्वियों को आगामी वर्षके विहारका आदेश देते जाते है और वे कर-बद्ध खडे हो उसे स्वीकार करते जाते है । साहित्य-सजन, अध्ययनअध्यापन, लेखन आ.िकी वार्षिक व्यवस्था यहींसे बनती है । एक प्रकारसे महोत्सबके दिन नये वर्षके आदि दिनके प्रतिरूपक है ।
महोत्सव के बाद आगामी वर्षका जीवन-सम्बल ले साधुसाध्वीगण निर्दिष्ट-यात्राकी ओर कूच कर जाता है । आचार्यश्री के विहारका भी नया क्रम प्रारम्भ हो जाता है जो लोग आचार्यश्रीकी निकट सम्पर्क मे सेवा करना चाहते है, उनके लिए फाल्गुन और चैत्र मास अधिक उपयुक्त होते है । प्रातःकालीन व्याख्यान प्राय १२ मास चलता है । गावके लोगोंको कम मौका मिलता है इसलिए विहार कालमे दोपहर और रातको भी आचार्यश्री स्वयं व्याख्यान देते हैं । सैकड़ों गावोका विहार, हजारो लाखों
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