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शिष्य सम्पदा
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बहुधा लोग अवस्थाकी बात सुनते ही घबडा जाते है, धीरज खो बैठते है, किन्तु यह उचित नहीं । अवस्था और बुद्धिका मेल ast विचित्र होता है । उसके आधार पर एकाही निर्णय करना व्यक्ति-स्वातन्त्र्यके साथ खिलवाड नहीं तो और क्या है ? बहुत से बूढ़े बालक होते है और बालक बूढ़े । बूढ़े और बालक केवल अवस्थासे नहीं होते। उनके और भी अनेक कारण है । अवस्था कोई गुण नहीं, वह तो एक काल - परिवर्तनकी स्थिति है । वह सबको आती है, क्रमश आती है, उसमे कोई परिवर्तन नहीं होता । *महाकवि कालीदासने 'वृद्धत्वं जरसा विना' इस सूक्ति से वयःस्थविरके अतिरिक्त स्थविरोंका संख्या- निर्देश करते हुए लिखा है :
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"अनाकृष्टस्य विषय, विद्याना पारदृश्वन |
तस्य धर्ममतेरासीद्, वृद्धत्व जरसा विना ॥ अर्थात् वैराग्य, ज्ञान और सदाचार - धर्मसे भी मनुष्य स्थविर बनता है। विवेचना - शक्तिका प्रादुर्भाव होता है कि बालक बूढा बन जाता है । मैं जिस बालककी जीवन कहानी लिख रहा हृ, वह उक्त पंक्तिका अपवाद नहीं था । वयसा शिशु होने पर भी वह वैराग्य, विवेक और सदाचारसे प्रौढ था । जन्म-परम्परा के अनुसार वह इस नश्वर संसार के निर्घृण प्राङ्गणमे एक घटना चक्र लिये हुए आया । दश वर्ष तक उसी लीलामे रमण करता रहा ।
* रवण प्रथम नग इत्येक २३ |