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दैनिक कार्यक्रम
१६१ रात रहते-रहते आपके पार्श्ववर्ती साधु आपको वन्दन कर संघकी मर्यादाओका आवर्तन करते हैं, वह आप स्वयं सुनते हैं। उसके बाद सूर्योदयसे कुछ पहले तक आत्मालोचन करते है। गावसे बाहर दूर क्षेत्रमे शौच के लिए जाना यह भी एक खास बात है। इसमें श्रम, टहलना-घूमना आदि सहज ही हो जाते है। प्रातःकाल एक घण्टाके लगभग व्याख्यान देनेका समय है। भोजनमे बहुत कम समय लगाते हैं। आपके आहारकी दो बातें विशेष उल्लेखनीय है संख्या और मात्रामे कम चीज और कम बार (सिर्फ दो बार ) खाना तथा उसके स्वाद, अस्वादके विषयमे कुछ न कहना। आप आहारके बाद थोड़े समय हल्का-सा विश्राम करते है । उस विश्राममे भार न बने, ऐसे साहित्यका अवलोकन किया करते है। दिनमे सोनेका विशेष स्थितिके बिना काम नहीं पडता। करीब दो घण्टेका समय साधु-साध्वियोंके अध्यापनमे लगता है। करीव दो-ढाई घण्टे आगन्तुक व्यक्तियोंसे बातचीत, प्रश्नोत्तर आदिके लिए है। सामान्यत दो घण्टे या श्रमके अनुपातमे कमवेशी मौन करते हैं। उस समय नथा शेष समयमे मनन, साहित्य-सृजन आदि निजी प्रवृत्तिया होती हैं। शामको फिर सूर्यास्तके बाद आत्मालोचन, प्रार्थना, कभी-कभी प्रार्थनाप्रवचन और स्वाध्यायके वाढ करीव दश बजे आप शयन करते
पाठकों को आश्चर्य होगा, सम्भव कोई भी न माने, किन्तु यह सच है कि संघकी व्यवस्थामे आपका अपेक्षाकृत बहुत क्म समय