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आचार्य श्री तुलसी
आप उत्तर देते समय आवेशमे नहीं आते और थोडे शब्दों मे उत्तर देते हैं । ये दोनों बाते आपने अपने पूर्व - आचार्य श्री कालुगणीसे सीखी-ऐसा कई बार आप कहा करते है । उत्तर देते समय आवेशमे आनेवाला 'आपा' खो बैठता है। अधिक बोलनेवाला उलझ जाता है । इसलिए उत्तरदाता के लिए अनावेश और संक्षेप ये दोनों गुण आदरणीय है । प्रश्नकर्ता स्वतन्त्र होता है । वह कटु बनकर आये तो भी उसे मृदु बना देना, इसमे उत्तरदाताकी सफलता है ।
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प्रो० ए० एस० वी० पन्तने अपने एक लेखमे आपसे हुए प्रश्नोत्तरोंकी स्थितिका वर्णन करते हुए लिखा
* प्राचार्य महाराज हमारी प्रालोचनाओोसे उत्तेजित नही हुए । उन्होने पहले हमारे दृष्टिकोणको समझनेका एव वादमें उसका उत्तर देनेका प्रयास किया । यह एक ऐसा गुण है, जो देशके विरले ही धर्माचार्यो में मिलता है । उनमें से बहुतसे तो भावनाओके असहिष्णु है ।
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The Acharya Maharaj was not upset by our criticsms He tried to understand our view point and then answer the same This 18 a rare quality to be found in the religions of the land. Many of them are intolerant of supposition They can brook of no argument But Sri Pujyajı, in all our discussions with him never talked disparagingly about other religions, but only maintained with telling arguments his own point of view'
( विवरण पत्रिका, २६ जुलाई, १९५१ ) वर्ष १ संख्या ३ पृष्ठ ३