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कान्तिकी चिनगारियाँ
आपने कहा
धार्मिक क्षेत्रमे आचार्यश्रीने अमर क्रान्ति की है। समयसमयपर तीर्थंकर और बड़े-बड़े आचार्य जिस लौ को जलाते आये है, उसीमे आपने भारी चैतन्य उंडेला है । स्वार्थ- पोषक लोग अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए 'धर्म खतरेमे' का नारा लगाते है । आप इसे सहन नहीं कर सके। "यह क्या ? धर्म खतरेमे ? स्वार्थ खतरेमे हो सकता है । धर्म आत्माकी वस्तु है, उसको किस बातका खतरा ?" आपने अपनी अनुभूति व्यक्त करनेके लिए एक कविता लिखी, जिसका शीर्षक रखा 'अमर रहेगा धर्म हमारा' । इसका जनतापर मनोवैज्ञानिक असर हुआ । लाखों जैन, जैनेतर, जो 'धर्म खतरेमे' की आवाज सुनते-सुनते भ्रान्त हो रहे थे, जाग
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