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जन-कल्याणकी भावना
१४३ युगकी गतिविधिको देखते हुए जनताके मानसका परिचय पा लेना आवश्यक था। भूतवादके लोहावरणसे आच्छन्न संसार अध्यात्मवादको भूमिसात् किये चला जा रहा है। वैसो स्थितिमे पहले ही अणुव्रतीसंघका मूल्याङ्कन करनेको एक कुशाग्रता पूर्ण कार्य कहना चाहिए। भारतीय रंगमंच बदल गया, फिर भी आत्मा नहीं बदली। उसमे अब भी अध्यात्मकी लौ जल रही है, यह पाया गया। एक वर्षके थोडेसे प्रयासमे पच्चीस हजार व्यक्तियों द्वारा तेरहसूत्री योजनाका स्वीकार किया जाना उसका पुष्ट प्रमाण है।
७-झूठो साक्षी न देना। ८-द्वेष या लोभवश आग न लगाना ।
९-पर-स्त्री गमन न करना, अप्राकृतिक मथुन न करना। १०-वश्यागमन न करना। ११-धूम्रपान व नशा न करना । १२-रात्रि-भोजन न करना । १३- साधु के लिए भोजन न बनाना ।