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साम्प्रदायिक एकता
जैन-धर्म समताप्रधान ही नहीं है, किन्तु समतात्मक है । ममताका मूल आत्माकी आन्तरिक भावनाओंमेसे निकलता है। भगवान् महावीरकी वाणीमे जिसका रूप है-"आयतुले पयासु' जिसकी प्राणीमात्रके प्रति समता-बुद्धि है, वही सही अर्थमे समता ___ का सन्देशवाहक हो सकता है। इस दिशामे जैन-आचार्योकी कृतिया बड़े गौरवके साथ उल्लेखनीय है।
भगवान् महावीरकी प्रकाशमान परम्परामे अनेक आचार्य तेजोमय नक्षत्रकी भाति चमके, कोटि-कोटि जनताके प्रकाश-स्तम्भ बनकर चमके। अस्त्र-शस्त्र या पशु-शक्तिके सहारे चमकनेका अर्थ है मर मिटना। जैन-धर्म इसका मूलत: परिपन्थी है। चमकना वह है कि बिना किसी दवावके जनता जिसे अपना