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प्राचार्य श्री तुलनी पर आवरण नहीं डाला जा सकता। नेता और अनुगामी दोनों आपसमे हृदयाकर्षणपूर्वक कार्य कर तो एकतन्त्र के समान स्वस्थ कोई दूसरी शासन-प्रणाली ही नहीं। वार्मिक शासनकी यह पद्धति राजनीतिक पण्डितोंके लिए अध्ययनका विषय है। भारत के लिए गौरवकी बात है।