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आज जिसकी चर्चा है
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स्वीकार की है। विदेशों मे इसका जो स्वागत हुआ, उससे जाना जाता है कि भारतके भाग्य में जगद्गुरु होनेका श्रेय आज भी सुरक्षित है।
जैन - सिद्धान्तोंकी व्यावहारिकतामें सन्देह करनेवालोंको यह संघ सक्रिय उत्तर है । आदर्श व्यवहारकी सतह में आकर ही यथार्थ बनता है । भगवान् महावीरके सिद्धान्त निवृत्तिमूलक होते हुए भी व्यवहारकी सचाईको लिए हुए हैं ।
समय-समय पर जैनाचार्योंने अपनी पावन कृतियों द्वारा
यह सन्देश जनताके कानों तक पहुंचाया है। आचार्यश्रीने भी अपने युगमे धर्मका महान् नेतृत्व किया है, यह लिखते हुए इतिहासकारकी लेखनी गौरवसे नाच उठेगी ।