________________
जन-सम्पर्क
११९
यह ठीक है, आप विशिष्ट व्यक्तियों के सम्पर्क को मर्यादा के प्रतिकूल नहीं मानते है। हिंसक शक्तियों के प्रतिरोधमें अहिंसक शक्तिया मिलजुलकर कार्य करें, यह आपकी सार्वदिक इच्छा रहती है। अहिंसाका प्रभाव बढ़े, इसी भावनासे आप किसीको समझाते है, किसीसे विचार-विनिमय करते है और किसीको उसका सार्वभौम प्रचार करनेकी प्रेरणा देते हैं। ___ आप पैदल विहार करते है। इसलिए आपको सुदूर-क्षेत्रोंतक पहुचनेमे कठिनाई होती है। दूसरे लोग सवारीपर बैठते है । वे शीघ्र आ-जा सकते है। इसलिए श्रावक लोग सारी परिस्थिति बता उन्हें निमन्त्रण देते है। अगर वे निमन्त्रण स्वीकार करें तो उन्हें आचार्यश्रीके सम्पकमे ले आते है। इसमे आपत्ति जैसी कोई बात लगती नहीं। प्रलोभन देकर लाते हैं, चापलूसी करते है, प्रमाणपत्र लिखवाते है आदि आदि बातें निर्मूल है। ये हिंसाभावनासे गढी गई है। आचार्यश्री साधन-शुद्धिपर हमेशा बल देते है। श्रावक लोग आगन्तुक व्यक्तियोका आतिथ्य करते है, उसे कोई प्रलोभन कहे तो भले ही कहे।
कुछ ऐसा लगता है कि हिंसक शक्तियोकी तरह अहिसक शपिया मिलजुलकर कार्य नहीं कर सकतीं। अहिंसामे प्रेम है, बन्धुता है, फिर भी एकत्व क्यों नहीं, यह एक गुत्थी है। आचार्यशेने २३ जुलाई ५१ को दिहीमे एक प्रवचनमे कहा .
"च्या कारण है कि चार चोरांका तो एक संगठन हो सकता है पर चार भद्र पुगप चतुपकोणके चार मिन्दुओंी तरह अलंग