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सफल प्रेरणा
आपकी वृत्तिया अपने तक ही सीमित नहीं रहतीं। उनका समूचे संघ पर प्रभाव पड़ता है। पुराने जमानेमे लोग कहते थे 'यथाराजा तथाप्रजा'। आजकी भापामे कहू तो 'यथा नेता तथानुग.।' जो बीत गई, उससे क्या । राजा रहे नहीं, तब 'जैसा राजा वैसी प्रजाका' का क्या अर्थ बने ? आजके आदसीको आज की भापामे बोलना चाहिये । 'जैसा नेता वैसा अनुयायी' यह ठीक है। आपका नेतृत्व अपने अनुयायियो पर असर कसे न करे ?,
आपकी सक्रिय शिक्षासे प्रेरणा पा साधु-संघने भी साहित्यनिर्माणके पुण्य कार्यमे बडी तत्परतासे हाथ बटाया है। समयके परिवर्तनने प्राकृत, संस्कृत आदि प्राच्य भापाओका न्धान हिन्दी को दिया है। अब वह राष्ट्रभापाफे पद पर आसीन है।