________________
प्राचार्य श्री तुलसी
वास्तवमे वस्तु पराई, क्यो अपनी करके मान ।। मैने जो सकट पाये, सब मात्र इन्ही के कारण । अब तोडू सव जजीरे, घ्यावे यो धृति धर घारे ।।
कवके ये बन्धन मेरे, अबलो नहीं गये विखेरे। जबसे मैने अपनाये तब से डाले दढ डेरे ।। सम्बन्ध कहा मेरे से, कहा भैस गाय के लागे । है निज गुण असली हीरे ध्यावे यो धृति धर धोरे ।।
मै चेतन चिन्मय चारू, ये जडता के अधिकारू । मै अक्षय अज अविनाशी, ये गलन-मिनल विशरारू । क्यो प्रेम इन्हीसे ठायो, दुर्गतिकी दलना पायो ।