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प्रवचनकी पंखुडिया बनती है। धर्माचार्य प्रवृत्तिका निर्देशन न करें, इसका अर्थ यह नहीं कि सत्प्रवृत्तिका मार्ग दिखाना उनके लिए आवश्यक नहीं है। है। और फिर है । जनता उनसे आशा रखती है और मार्ग-दर्शन चाहती है आचार्यश्रीने इसी दिशामे संसारको ऋणी बनाया है।