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प्रवचनकी पडिया
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मननीय दृष्टिकोण सामने रखते है । यह दूसरी बात है कि भूतवादके राग-रंगमें फंसी दुनिया उसे न समझ पाये अथवा समझकर भी न अपना सके, किन्तु वस्तु स्थिति उसके साथ है
" लोग कहते है - जरूरतकी चीजें कम हैं । रोटी नहीं मिलती कपड़ा नहीं मिलता । यह नहीं मिलता, वह नहीं मिलता आदि आदि । मेरा खयाल कुछ और है। मैं मानता हू कि जरूरतकी चीजें कम नहीं, जरूरतें बहुत बढ़ चली, संघर्ष यह है । इसमे से अशान्तिकी चिनगारिया निकलती है।"
बाहरी नियन्त्रणमें आपकी विशेष आस्था नहीं है । नियम आत्मामे बैठकर जो असर करता है, उसका शताश भी वह बाहर रहकर नहीं कर सकता । इसको बार-बार बड़ी बारीकी के साथ समझाते है
"सफलता की मूल कुजी जनताकी भावना है। उसका विकास संयममूलक प्रवृत्तियों के अभ्यास से ही हो सकता है ।
नैतिक उत्थान व्यक्ति तक ही सीमित रहा तो उसकी गति मन्द होगी । इसलिए इस दिशा में सामूहिक प्रयास आवश्यक है । यह प्रश्न हो सकता है, अक्सर होता ही है । इसका उत्तर सीधा है। मैं न तो राजनैतिक नेता हूं, न मेरे पास कानून और डण्डेका बल है । मेरे पास आत्मानुशासन है । अगर आपको जचे, तो आप उसे लें ।
आप जन तन्त्रको सफल बनाना चाहते हैं तो आत्मानुशासन सीखें। मेरी भाषामे स्वतन्त्र वही है, जो अधिकसे अधिक