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आचार्य श्री तुलसी
खराब, ऐसा नहीं कहा जा सकता। यही बात पुरानी वस्तुओ के लिए भी लागू होती है। अच्छापन या बुरापन नवीनता या प्राचीनताकी अपेक्षा नहीं रखता । बहुत सी प्राचीन वस्तुएं भी अच्छी हो सकती है और नई भी । यह तो वस्तुकं गुण पर निर्भर है । इसलिए नईका नाम सुनते ही उसका विरोध नही हो जाना चाहिए और उसी तरह पुरानी से भी नाक-भौं सिकोड़ना ठीक नहीं । वास्तवमे अच्छेपन और बुरेपनको परखने के उपरान्त ही कुछ निर्णय किया जा सकता है और यह उचित भी है ।
इसलिए नवयुवको की उचित मागों पर अभिभावकगण सहिष्णुतासे विचार करें । यदि युवकों के नये विचार बुजुर्गाको ठीक नहीं जचते, तो उचित यह है कि वे प्रेमसे समझाव और अपने विचार उनके दिमाग मे जचाने की कोशिश करें। उनकी कुछ भी नहीं सुनकर केवल अपनी राग अलापना कि 'क्या करे, युवक हमारी मानते नहीं है' स्वयं अपना महत्त्व गंवाना है । क्यो नहीं वे अपने आपको ऐसा बनाले कि युवको को उनकी न्यायसंगत बात माननी ही पड मगर यह तभी सम्भव है, जबकि परस्पर समन्वयात्मक रीति से बात की जाय । यदि वृद्ध और नौजवान दोनो इस तरहका व्यवहार काममे लायें तो यह आपसी संघर्ष वहुत शीघ्र दूर हो सकता है, जिसका दूर होना आवश्यक है |
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म युवक मानसको समझता है । वह क्रान्ति चाहता है । उसके लिए आन्दोलन करता है । आश्चर्य यह है कि वह अपना