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माचार्य श्री तुलसी (वैकल्पिक ) भापा और कला इन ह विपयोंका शिक्षण होता है। इसके शिक्षाकालको अवधि नौ वपकी है । इसकी योग्य, योग्यतर और योग्यतम, ये तीन परीक्षाएँ निश्चित है । साधु-संवमे इसका सफल प्रयोग हो रहा है।
जैनधर्म शिक्षा' द्वारा श्रावक - समाज तत्त्वज्ञानी, सर्वधर्मसमन्वयी और विशालदृष्टि होगा, इसमे कोई सन्देह नहीं । अनपढ स्त्रियाँ भी आपकी प्रेरणाके सहारे जैन-सिद्धान्तोकी मार्मिकता तक पहुचनेमे सफल हुई है।
स्त्रीशिक्षाके बारेमे आप अन्तर-द्वन्द्वसे मुक्त है। इस विषय पर आपने कहा है
“शिक्षा विकासका साधन है। उससे चुराई बढ़ती है, मैं यह माननेको तैयार नहीं हू । शिक्षाके लिए स्त्री-पुरुपका भेद-भाव नहीं किया जा सकता। बुराईके कारणोंको ढूढना चाहिए। उनके बदले शिक्षाको बदनाम करना एक बुरी मनोवृत्ति है।"
तीसरी शिक्षा-पद्धति प्रयुक्त नहीं हुई है। प्रयोगकी परिधिके आसपास है। सिद्धान्तके अतिरिक्त दूसरे विपयोंमे गति नहीं पानेवालोंके लिए यह पद्धति अत्यन्त लाभकारक होगी, ऐसा सम्भव है।
इनके अतिरिक्त मासिक निबन्ध-लेखन, संस्कृत-भापण-सम्मेलन, समस्या-पूर्ति-सम्मेलन, कवि-सम्मेलन, साप्ताहिक संस्कृतभापण-प्रतिज्ञा, वाद-प्रतियोगिता, सिद्धान्त-चर्चा-आयोजन, सहस्वाध्याय आदि अनेकविध प्रवृत्तिया आपकी विद्या विकासयोजनाके अंग बनीं।