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प्रवचनको परिया
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आप उस व्यापक धर्मको स्वीकार कर चलते हैं, जिसमे पूर्ण
समता है । आपने एक भाषण में कहा
"धर्मके लिए भी जातिवादका प्रश्न उठता है ? खेट || धम सबके लिए है । भगवान् महावीर के शासनकाल मे हरिकेशी जैसे चाण्डाल मुनि वने और अपनी साधनाके उसे देवताओंके पूज्य बने । जनों को इस जातिवाद के पचड़े में पडना उचित नहीं ।
मन्दिर और हरिजन प्रवेश के प्रश्नको लेकर आपने कहा"लोग कहते है हरिजन मन्दिर मे नहीं जानते। उन्हें धम करनेका अधिकार नहीं । भला यह क्यों ? धर्मका हार सबके लिए गुला है । वह प्रतिबन्ध फेसा ? धर्मके क्षेत्र जातिजन्य उता नहीं, वा कर्मजन्य उद्यता होती है। धर्म की जा जीवन उत्कृष्ट साधनामय हो । धार्मिक उधना परिजन या महाजन सपना ऐ । धर्म ह्मणोंका पनियोकाट शुद्रोका नहींशान्ति है । वर्ण और जानिमूलक भेद-भावको जी। भगपान महावीर द्वारा उद्घति के जीवन आदर्श
आरो।"