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प्रवचनकी पंखुड़ियाँ
फुलकी कोमल पंखुडियों मे आकर्षण होता है, इसमे कोई विवाद नहीं। वह कितना टिकता है, इसमे कुछ ऐसा वैसा है ।
चे प्रवचनकी पंखुडियों, हृदयकमलको विकसानेवाली पंखु दिया कितना आकर्षण, नहीं कितना स्थायित्व रखती है, इसका मध्यको ज्ञान है । आत्मनिष्ट योगीकी साधनासे तपी वाणीको नीलिए इसलिए लोग उमडते है कि उसका उनपर स्थायी एसर होगा। स्थायी असर जितना ही नहीं, उससे कहीं अधि
पन उनके हितका है। अहिनकी माता असर भी पायी होता है. पर उससे क्या बने । आचार्यश्री की प्रवचनपाणी जनताये हितपी जो साधना है. सो मार्गदर्शन. ए ब्यौरा देना में मेरो शरिके परे नानना है। भी ये बिना नहीं रहेगा।
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